ये निर्णय आप ही को करना है
कि पहले मेरी पोस्ट पढ़नी है या पहले ये वीडियो देखना है। इसके बाद आपसे मेरे कुछ
तीखे सवाल होंगे, मुझे
पूरा विश्वास है कि आपके पास मेरे सवालों के जवाब नहीं होंगे बावजूद इसके सवाल
पूछना मेरा काम है वो मैं करूंगा। उसके पहले आपको घटनाक्रम की जानकारी दे दूँ।
जम्मू-कश्मीर से अक्सर हिंसा और उत्पात की तस्वीरें सामने आती रहती
हैं, उपद्रवियों
और पत्थरबाजों का सामना हमारे सुरक्षाबल किस संयम के साथ करते हैं उसकी एक बानगी
इन तस्वीरों में दिखाई दे रही है। वीडियो में श्रीनगर में रविवार को चुनाव के बाद
ड्यूटी से लौट रहे सीआरपीएफ जवान दिखाई दे रहे हैं, जिन पर कुछ लोग हमला कर रहे हैं। उन्हें पैरों से
मारा जा रहा है। उनके सिर पर हमला कर हेलमेट फेंक दिया गया, लेकिन इन सबके बीच जवान
अपना संयम नहीं खोते और चुपचाप चलते रहते हैं। यह वीडियो बडगाम का है। यह वह सच
बताता है जिससे हम अपने आपको अक्सर बेखबर रखते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि
जवानों पर हमला करने वाले कोई आतंकवादी नहीं, बल्कि वहां के कुछ स्थानीय लोग हैं, जिन्होंने सुरक्षा बलों को जबरन एक पोलिंग स्टेशन
छोड़ने को मजबूर किया।
अलगाव वादियों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद लोग वोट देते रहे हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
मेरा सवाल सभी राजनीतिक दलों से है कि आखिर श्रीनगर जैसे इलाके में वोटिंग सिर्फ 7.14 प्रतिशत
ही क्यों हुई?
गृह मंत्रालय के आँकड़े हैं... चुनाव के दिन 8 लोगों की मौत हुई, 150 लोग घायल
हुए, 24 ईवीएम
लूटी गईं और 2 स्कूल
जलाए गए। इसके साथ ही 120 पोलिंग
बूथ में तोड़-फोड़ हुई। जाहिर है कि हम और आप चाहे हालात सुधरने की जितनी दलीलें
दें सब झूठी हैं, कश्मीर
में माहौल पहले से बिगड़ा है। गृह मंत्रालय का कहना है कि उसने आयोग से इस वक्त
चुनाव कराने को मना किया था, आयोग याद
दिला रहा है कि अप्रैल में चुनाव करा ही लिए जाने थे और सरकार उसे निर्देश नहीं दे
सकती। बहरहाल सवाल यह है कि घाटी के इस बिगड़े माहौल का जिम्मदार कौन है? भारतीय सेना रह-रह कर यहाँ
के लोगों की बेहतरी के लिए तमाम तरह के काम अंजाम देती है, फिर ये कौन लोग हैं जो इन
सब के बावजूद प्रो-पाकिस्तानी एजेंडा चला रहे हैं? ऐसा है तो क्या उन्हें देखते ही गोल मार देने में
कोई बुराई है?
राजनीतिक दलों और नेताओं को सोचना होगा, आख़िर घाटी में माहौल किस
तरह बेहतर बनाया जा सके, लेकिन
कुछ बुद्धिजीवी नेता और डिजाईनर पत्रकार ऐसे बयान देते हैं, कि घाटी का माहौल खराब हो
जाता है। अराजक तत्वों, अलगाववादियों, पत्थरबाजों और प्रो-
पाकिस्तानियों को ये लोग बल देते हैं। सियासी नेता एक दूसरे पर कींचड़ उछाल कर
विषय को विषयान्तर कर जाते हैं। राष्ट्रवादी कहलाने वाले हो हल्ला मचा कर अगले
घटनाक्रम का इंतजार करते हैं और तथाकथित बुद्धिजीवी घुमा फिरा कर अपना पल्ला झाड़
जाते हैं। मेन मुद्दे को इसी तरह लात मारा जाता है जैसे आजादी मांगने वाला ये
दीवाना सीआरपीएफ को लात जूते मार रहा है।
ये तो श्रीनगर का हाल था क्या अनंतनाग के लोग बाहर आकर वोट करेंगे? यदि नहीं किये तो वहाँ
हमारे लोकतंत्र का क्या होगा? क्या
हमारे हाथ से कश्मीर छूट रहा है?
हालांकि इसके पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि
साल भर में 'बदला हुआ' कश्मीर नजर आएगा, भले ही यह बदलाव कैसे भी
हो। सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा था कि कश्मीर में सुरक्षा बलों को उनका कर्तव्य
निभाने से रोकने की कोशिश करने वालों से सख्ती से निपटा जायेगा। लेकिन इस विडियो
में सहमे हुए देश के जवान कुछ और ही कह रहे हैं। कौन सी मजबूरी ने उनके बंदूकों को
शांत रखा हुआ है? केन्द्र
में दक्षिणपंथी बीजेपी की सरकार,
राज्य में बीजेपी गठबंधन की सरकार, देश के सबसे बड़े राज्य समेत आधे से अधिक राज्यों
में भी बीजेपी की ही हुकूमत है,
ऐसे में सोचना जरुरी है।
घाटी में पैलेटगन के उपयोंग पर सवाल उठाने वालों से पूछना चाहुंगा, इस विडियो को देखिये और
जवाब दीजिए क्यों न इनपर तोप चलाया जाय?
मुझे पता है आपके पास जबाव नहीं है और जो जवाब होंगे उनसे आप खुद ही
संतुष्ट नहीं होंगे अपनी अंतरआत्मा से पूछियेगा...तो मुझे क्या संतुष्ट कर पायेंगे
आप? इस वक्त
मुझे केवल देश द्रोहियों का लाल रक्त ही संतुष्ट कर सकता है।
बहुत ही सही बात है राजन भईया
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