किरदार बदला है वक्त के रंगमंच पर,
खुद अपनी ही हस्ती मिटा आये हम।
उनपर क्यों मेरी मौत का इल्जाम हो?
अपने ही हाथों कब्र खोद आये हम।
रिश्ते, रंजीशें करती रहीं हमेशा,
जीती हुई बाज़ी भी कुछ हार आये हम।
लहरें आती रही, मुझे गिराती रहीं,
तेज धारे में कहीं फिर बह आये हम।
अपनी औकात से बढ़ कर मांगा सदा,
शायद कहीं औकात भूल आये हम।
हाथ खाली रहा मैं लुटाता रहा,
मोहब्बत की गठरी पूरी खोल आये हम।
मोहब्बत की गठरी पूरी खोल आये हम।
मैं चुप था, न बोला जब जरुरत हुई,
ख़ताएं भी दो चार कर आये हम।
कहने को भूला है गुजरा जमाना,
मगर कहो कैसे तुमको भूला जाये हम?
बैठो तो सही एक पल के लिए,
दास्तां अपनी कुछ सुना जाये हम ।
मगर कहो कैसे तुमको भूला जाये हम?
बैठो तो सही एक पल के लिए,
दास्तां अपनी कुछ सुना जाये हम ।
फ़र्ज की वक़्त से जो संधि हुई,
उसूलों को कहीं फिर छोड़ आये हम।
कुछ पाया तो है मैंने खोकर उसे,
आदतें भी बदली जब जरुरत हुई,
जरुरतों से न पीछा छूड़ा पाये हम।
वक्त गुजरते रहे, दिन संवरते रहे,
वक्त से भी आगे फिर निकल आये हम।
दिल पर लिखा था जहाँ नाम उसका,
शराबों से उसको जला आये हम।कुछ पाया तो है मैंने खोकर उसे,
बाद उसके ये हिसाब लगा आये हम।
Note- Copyright protected by Rajan kumar jha.
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