मंगलवार, 29 नवंबर 2016

हम-तुम, तुम...........हम

मेरे रगों में लहू की तरह यार तुम्ही तो बहते थे।
एक दूसरे से लड़-लड़ कर एक-दूसरे पर मरते थे।

क्यों न निभा सकी साथ मेरा जब प्यार किया?
मैं ही तुम्हारा पागल हूँ हरदम तुम ये कहते थे।

वो उमर भर , रूठने मनाने की बातें,
अक्सर हम तुम करते थे...

वो प्यार की कड़वी मीठी बातें...
अक्सर हम तुम करते थे..

मेरी दुनिया की मल्लिका थी तुम,
राज तुम्ही तो करते थे।

आँसुओ को हमने रोक लिया जो याद में तेरी बहते थे।
वो ताज महल भी तोड़ दिया जिसमें तुम हम  रहते थे।

लेकिन अब हमने दिल के दरवाजे पर ताला लगा दिया..
वहाँ कोई नहीं रहता जहाँ तुम हम रहते थे।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...