शनिवार, 23 सितंबर 2017

मैं भी जीती तू भी जीता

चाहत भरी अपनी आँखों से
 उसने देखा मैंने देखा।

एक दूजे की जज्बातो को 
उसने समझा हमने जाना।

शुरू हुई फिर प्रेम कहानी 
हो गयी मेरी, मेरी दीवानी।

जान कर भी अंजान रहे 
दुनियां की रीत रिवाजों से।

डरे कभी न अपनों से 
डरे न कभी परायों से।

जात पात सब धर्म कर्म सब
 उसने देखा न हमने जाना।

अपनों ने जब इस प्यार को जाना,
बुनने लगे फिर ताना बाना।

उनको खींचा हमको खींचा,
प्यार हमारा समझे नीचा।

छूट गए फिर हाथ हमारे,
मुरझाने लगे वो फूल बिचारे।

जिसे अभी तक बड़े जतन से
उसने सींचा हमने सींचा।

है आश यही विश्वास यही...
काश अभी वो आकर कह दे ,
 सुन पगले, मैं भी जीती तू भी जीता.....

- Rajan Kumar Jha

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...