सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

कश्मीर, कैटेलोनिया या फलस्तीन?

 सुप्रीम कोर्ट में आज जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकार अनुच्छेद 35ए पर अहम सुनवाई होनी थी लेकिन इसे आठ हफ्ते के लिए टाल दिया गया है। सुनवाई को टालने की अपील केंद्र सरकार ने की थी। इसके कई मायने निकाले जा सकते हैं, एक तो इसकी आंच गुजरात विधानसभा चुनाव पर लगे लेकिन इससे रोटी न जले। दूसरी मामले को खिंचकर 2019 तक लाया जाय ताकि आंच की आग से 2019 के आम चुनावों में हाथ सेका जा सके। हालांकि न्यायपालिका समय पर अपना काम करती है लेकिन ये कार्यपालिका से प्रभावित नहीं होते होंगे कहना गलत होगा।
दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के तीन अलगाववादी नेताओं ने कोर्ट से अनुच्छेद 35ए को रद्द करने का फैसला किए जाने की स्थिति में घाटी के जनांदोलन की चेतावनी दी है। साथ ही, यह भी कहा कि राज्य सूची के विषय से छेड़छाड़ फलस्तीन जैसी स्थिति पैदा करेगा। ये एक धमकी है, लेकिन सरकार पात-पात चल रही है। ऐसा नहीं है कि कश्मीर समस्या अकेले भारत के साथ है। दरअसल कश्मीर जैसे हालात विश्व को दूसरे देशों में भी हैं। बल्कि इससे भी ख़राब है।
यूरोप और दुनिया भर के लोगों की निगाहें कैटेलोनिया की तरफ है जहां शासन स्पेन सरकार ने सीधे अपने हाथ में ले लिया है। कैटेलोनिया के आजाद होने की मुहिम को रोकने के लिए स्पेन की सरकार ने वहां का शासन सीधे अपने हाथ में ले लिया है। रविवार को बार्सिलोना की सड़कों पर हजारों की संख्या में एकीकृत स्पेन के समर्थकों ने प्रदर्शन किया। स्पेन के प्रधानमंत्री ने  कैटेलोनिया में सीधे केंद्रीय शासन लागू करने का एलान किया था। इसके साथ ही वहां की स्थानीय सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और अगले चुनाव के लिए 21 दिसंबर की तारीख तय कर दी गयी। हालांकि कैटेलोनिया के राष्ट्रपति कारलोस पुजदेमोन और उप राष्ट्रपति ओरिओल युंकेरास समेत प्रमुख प्रशासकों ने कहा है कि वे स्पेन सरकार के इस दखल को स्वीकार नहीं करेंगे। । मामला ईराक में भी फंसा है। ईराक के कुर्द बहुल क्षेत्र में 25 सितम्बर को हुए जनमत संग्रह ने  खलबली मचा दी। स्वायत्तशासी कुर्द इलाके के राष्ट्रपति मसूद बरजानी को इस बात के लिए राजी करने के लिए अंतिम क्षणों तक प्रयास होते रहे कि वे जनमत संग्रह को स्थगित कर दें क्योंकि इसके चलते  इस्लामिक स्टेट यानी आई.एस. के बचे-खुचे तत्वों का सफाया करने का क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों का अभियान अपने मुख्य लक्ष्य से भटक जाएगा।
मोटा मोटी इन दोनों देशों की तुलना में भारत की पकड़ कश्मीर पर ज्यादा है। इन दोनों देशों के जो हालात हैं उनकी तुलना कश्मीर से करेंगे तो पायेंगे कि सरकार कितने कठोर कदम उठा रही है। जो यहाँ के लोगों के लिए काम भी कर रही है और आतंकियों का सर्वनाश भी कर रही है। इन सब के बीच कश्मीरीयों की ज्यादती को भी नकारा नहीं जा सकता। स्पेन का जो इलाका उससे अलग होना चाहता है वो अपने देश को कमा कर खिलाता है। लेकिन कश्मीर देश का कमाया हुआ खा रहा है। कश्मीर पर देश की बजट का भारी भरकम हिस्सा खर्च किया जा रहा है। ये बात नेताओं से ज्यादा वहाँ के लोगों को समझनी होगी। उनका फायदा किसमें है। मुझे उम्मीद है कि पत्थरबाजों और पाकिस्तान परस्तों को छोड़कर अन्य कोई भी धरती के स्वर्ग में फलस्तीन जैसे हालात तो नहीं ही चाहेगा।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...