सोमवार, 1 जनवरी 2018

सिर्फ बोलने से होगा...?

जब हम स्कूल में हुआ करते थे, दिसंबर के जाने के बाद से ही नव वर्ष का आगमन नई उमंग के साथ  एक नई ऊर्जा का भी संचार करता था, अच्छे का तो ठीक से कह नहीं सकते पर कुछ नया करने की आस भी जगती थी। भगवान से अनेकों कामनायें होती थी नये साल के लिए, पूरी लिस्ट होती थी। ग्रीटिंग कार्ड को नहीं भूला सकते। मुझे याद है दिसंबर के आखिरी हफ्ते से ही कार्ड खरीदने के लिए पैसे जोड़ना शुरु कर देता था। एक तो घर में हर चीज का अभाव था उपर से कार्ड के लिए पैसे कौन मांगे। वैसे भी माँ पिताजी को कार्ड खरीद कर बांटना पैसे की बर्बादी से अधिक कुछ और नहीं लगता था। अभाव का जीवन ही ऐसा होता है। परंतु ऐसा भी नहीं है कि मैं कार्ड खरीद ही नहीं पाता था, बल्कि 10-12 जनवरी तक कार्ड खरीदने और बांटने का सिलसिला चलता रहता था। हर कैटगरी के कार्ड हुआ करते थे। मेरे मित्रों के लिए कम महंगे कार्ड और लड़कियों के लिए थोड़े महंगे वजह ये थी कि वो काफी महंगे कार्ड दिया करती थी हमें। फोल्डिंग वाले जिसे पूरे एक साल संभाल कर रखते थे, जब तक अगली जनवरी को वो रिप्लेस न हो जाये।
अब कार्ड तो नहीं बांटता लेकिन WhatsApp पर शुभकामनाओं का आदान प्रदान हो जाता है। हमें नहीं पता होता कि उन शुभकामनाओं से अगले की जिंदगी बदलेगी या नहीं परंतु सामने वाले के चेहरे पर मुस्कान देखकर खुशी होती है। शुभकामनायें अपने लिए भी कर सकते हैं लोग करते भी हैं। मैंने तो दुराचारियों को भी अपने लिए शुभकामना करते देखा, मैंने सबसे अधिक झूठ बोलने वाले के फेसबुक पोस्ट में देखा कि हे इश्वर मुझे झूठों से दूर रखना इस साल। अब ईश्वर उसे खुद से अलग कैसे करे? उनके सामने भी विकट समस्या है। उधर नव वर्ष पर रवीश कुमार जी 2019 के चुनावों की तैयारी कर रहे हैं। हाँ एनडीटीवी वाले की ही बात कर रहा हूँ। उन्होंने भी लिखा है 18 साल के नौजवानों को पत्र, और बीजेपी को वोट न देने की अप्रत्यक्ष वकालत कर रहे हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि वोट किसे देना है इसका ठीक से खुलासा नहीं हो सका।  खैर, मुझे क्या मुझे तो पत्रकार वो अच्छे लगते हैं रामनाथ गोयनका अवार्ड भी मिल गया अब तो।
 मैंने भी नये साल के मौके पर अपने ब्लॉग पर एक कविता लिखी थी। उसे फेसबुक के नये पेज पर शेयर भी किेये। उसके चंद घंटो बाद जम्मू कश्मीर से दर्दनाक और झकझोर देनेवाली खबर आयी। खबर थी कि सीआरपीएफ कैंप पर हमला हुआ है, जिसमें हमारे 5 जवान शहीद हो गए। सरकार और नेता खेद प्रकट किये और जनजीवन सामान्य हो गया। लेकिन मेरे पेज पर घूमते फिरते एक तथाकथित राष्ट्रभक्त आ गये। उन्होंने आतंकियों को गालियां दी और मुझे शोक मनाने के साथ साथ नसीहत दी कि ऐसा दोबारा नहीं कहना। उसका अर्थ मेरे पोस्ट के शुभकामनाओं से था। मैंने उन सज्जन को कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन मन में कई प्रश्न उभर रहे थे, कि फेसबुक पर नाराजगी जताने से अच्छा है मेहनत करो सेना में शामिल हो जाओ और बदला लो। हमारी तो अब उम्र बीतने लगी, हाथ में की-बोर्ड थाम लिया है। विवश हूँ फिर भी साहस है यदि सरकार और पदाधिकारी मुझे अवसर दें तो मैं युद्ध के मैदान में जाकर दुश्मनों का यमराज हो जाऊंगा। मेरा निवेदन है कि ऐसी कोई प्रक्रीया हो तो जरुर बतायें। मैं तो तैयार हूँ लेकिन क्या आप हैँ?  क्या आप भी हैं जो फेसबुक पर बड़ी-बड़ी बातें कर जाते हैं और जब राष्ट्र को आपकी जरुरत होती है उस समय कही अन्तर्ध्यान हो जाते हैं।...... सिर्फ बोलने से होगा तिवारी जी...?
वैसे नये साल की शुभकामनायें......

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...