आज के दौर में बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखना मुश्किल होता जा रहा है..बच्चे बोलना बाद में सीखते हैं और स्मार्टफोन चलाना पहले... अगर आपके घर में भी बच्चे स्मार्टफोन के बिना रह नहीं पाते तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है...
इन दिनों बच्चों में भूख कम लगने, वजन घटने, या वजन ज्यादा बढ़ने, चिड़चिड़ापन मानसिक और शारीरिक कुपोषण जैसी सामान्य सी लगने वाली समस्याएं बढ़ती जा रही हैं... अगर आपके बच्चों में भी इस तरह की समस्याएं हैं तो शायद आपका बच्चा मोबाइल एडिक्शन का शिकार है. खाना खाते हुए फोन देखने और गेम्स खेलने की लत की वजह से अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर, हाइपरऐक्टिविटी और स्लीप डिसॉर्डर जैसी बीमारियां भी बच्चों को घेर रही हैं.. जो आगे चलकर उनके लिए भयंकर खतरे पैदा कर सकती है.. थोड़ी और जांच करें तो पता चलता है कि आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस की मदद से इंटरनेट का बाज़ार न सिर्फ बच्चों को अपनी मतलब की चीज़ें परोस रहा है...बल्कि उन पर काबू भी पा रहा है...और इसी वजह से इसी महीने यूट्यूब पर 12 सौ करोड़ से ज्यादा का जुर्माना लगा है.. यूट्यूब के जरिए आप अपने बच्चों को भले ही थोड़े समय के लिए व्यस्त कर लेते हैं...लेकिन आपको ये जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं ये यूट्यूब आपके बच्चे को अपना गुलाम तो नहीं बना रहा है..
रिसर्च इस बात को साबित तो जरूर कर रहे हैं कि आज के बच्चों की डिजिटल समझ काफी अच्छी है..लेकिन ये जब बच्चों के लिए ये एक लत बन जाए...तो परेशानी माता-पिता को ही होती है... होनी भी चाहिए क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार तो माता पिता ही हैं...
पिछा छुड़ाने के लिए मोबाइल फोन बच्चों के हाथों में दे दिया गया है. देखते-देखते टीवी और खेल उपकरणों की जगह मोबाइल ने ले ली है.. बच्चे अब शारीरिक विकास से जुड़े खेल नहीं खेलते, उनका संसार अब मोबाइल है. हम सबने मिलकर पढ़ाई, नौकरी जैसी व्यस्तताओं के कारण बचपन के आँगन से बचपन को भगा दिया है. आजकल के बच्चों को पहले से ही पढ़ाई और स्कूल की तरफ से दी जा रही दूसरी गतिविधियों(नौटंकियों) से ही फुरसत नहीं लेकिन समय मिलते ही मोबाइल उन्हें जकड़ लेता है. अभिभावक ऑफिस की टेंसन के बहाने बच्चों के प्रश्नों से बचने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं.. बाकी काम बच्चे खुद कर लेते हैं... उधर व्यस्त माता-पिता को पता नहीं चलता कि उनके घर का बिगड़ता बचपन विकृत हो रहा है.. माता पिता इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि उनके बच्चे कितने होशियार हैं अभी से मोबाइल इस्तेमाल करना सीख गया है..कुछ अभिभावक यहां तक कहते सुने जाते हैं कि हमसे ज्यादा तो आजकल के बच्चे मोबाइल बेहतर चला लेते हैं वह तो हमें भी सिखा देता है. अर्थात मां-बाप यह समझने लगे हैं कि आजकल बचपन में बुद्धिमान होने का सबसे शानदार प्रमाण मोबाइल चलाना ही रह गया है... उधर बच्चे पढ़ने के बहाने इंटरनेट का पैक हथिया लेते हैं और यूट्यूब जैसी सुविधाओं के सहारे बचपन में ही जवान होने लगते हैं.. बच्चे के पैदा होने के बाद शहद ही चटाइये मोबाइल नहीं.. अगर बचपन का नाश हो रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार आज के अभिभावक हैं...
पब्जी और दूसरे प्रकार के गेम भी बच्चों के मोबाइल एडिक्शन के लिए जिम्मेदार हैं. इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे...

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