प्राचीन इतिहास की सबसे खास बात यह है कि इसे हम में से किसी ने देखा नहीं है। हम श्रोतों शिलालेखों या पुराने ग्रंथो से इसे जानते हैं, निश्चय ही ऐसी बहुत सी बातें होती होंगी जो हम जान नहीं पाते और बहुत कुछ ऐसा होता होगा जो हम गलत जानते हैं। बहरहाल इतिहासकारो के तर्कों और कुछ साक्ष्यो से अन्दाज़तन हम एक नतीजे पर पहुचते हैं और उसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लेते हैं।
हमारे पाठ्यक्रम में इतिहास का अहम् किरदार होता है भले बच्चों की उसमे दिलचस्पी हो न हो। आपमें से बहुत तो इतिहास सिर्फ पास हो जाने भर के लिए ही पढ़े होंगे। जहाँ तक मैं सोंच पा रहा हूँ इतिहास हमारे पाठ्यक्रम में इसीलिए शामिल किया गया ताकि हम अपने वजूद को जान सकें। हम क्या हैं क्यों हैं से लेकर कैसे हैं तक की जानकारी इतिहास से मिल जाती है। कई ऐतिहासिक घटनाओं पर लिखी जाती है धारावाहिक और फ़िल्में भी बनायीं जाती हैं।
अब फिल्मो पर आते हैं। फिल्मो के बारे में कहा जाता है कि यह समाज का आईना है। अब जब आप समझ चुके हैं कि मैं किस विषय पर लिखने जा रहा हूँ तो ठीक से समझिये। आईना हमेशा सही प्रतिबिम्ब दिखाती है, जो आप हैं। कल्पना कीजिये अगर आईना गलत प्रतिबिम्ब दिखाये तो....? सोचिये। किसी घटना क्रम से मत जोड़िये, सिर्फ सोचिये की अगर किसी ऐतिहासिक फिल्म के अंश मिर्च मसाला लगाकर दिखाये जायेंगे इतिहास और अन्य मान्यताओं के साथ तोड़ मरोड़ की जायेगी तो इसका परिणाम क्या होगा?
फिल्मो का भारतीय समाज पर इतना असर पड़ता है कि दर्शायी गयी कहानी को कुछ समय के लिए तो सच ही मान लिया जाता है। शुरुआत में दिखाए गए डिस्क्लेमर को हम ऐसे इग्नोर करते हैं जैसे उसका फिल्म से कोई नाता नहीं है बस हमारी उत्सुकता थोड़ी बढ़ जाती है। देश की आनेवाली पीढ़ी जो सिर्फ टिकमार पढ़ाई करती है उनको काफी ज्ञान टीवी और सिनेमा से मिलता है। जब वो फिल्मो को देखेंगे निश्चित ही दिखाये गए घटना क्रम को सांच मान लेंगे। हम इतिहास की गलत जानकारी उन्हें क्यों दे?
सीधे सीधे संजय लीला भंसाली पर आते हैं। बीते दिनों राजस्थान में उनको करणी सेना के कार्यकर्ताओं के रोष का सामना करना पड़ा।
संजय लीला भंसाली को तो नव देवदास काल से ही लोग जानते होंगे जो लोग नहीं भी जानते थे अब जान गए होंगे। करणी सेना के बारे में जान लीजिए मैंने भी अभी हाल ही में जाना है।
इस संगठन का पूरा नाम श्री राजपूत करणी सेना है जो 2006 में बना। करणी राजस्थान में पूजी जाने वाली देवी हैं उन्हें माँ दुर्गा के अवतार के रूप में पूजा जाता है राजपूतो की उनमे अधिक श्रद्धा है, क्यों है उसकी लंबी कहानी है जिन्हें जानना हो मुझसे अलग संपर्क कर लें। हम अपने मुद्दे पर आते हैं।
जयपुर के जयगढ़ किले में चल रही संजय लीला भंसाली की पीरियड ड्रामा फिल्म 'पद्मावती' की शूटिंग के दौरान राजपूत करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा मचाया और तोड़-फोड़ की। इतना ही नहीं इस घटना के दौरान प्रदर्शनकारियों ने फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली को थप्पड़ भी मार दी। करणी सेना का कहना है कि उन्हें अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बीच कथित रूप से फिल्माए जा रहे लव सीन पर आपत्ति है। वही संजय लीला भंसाली ने सफाई दी कि यह सीन फिल्म के भीतर खिलजी की कल्पना या स्वप्न का सीन था इससे इतिहास के साथ छेड़ छाड़ नहीं होता। वास्तविकता क्या है वही जानें उनकी सफाई मोटा मोटी यही थी। मैं इंतेजार कर रहा था कि गोली चलाने वाले व्यक्ति के बारे में भी कुछ बाते होंगी। लेकिन यह बात सिर्फ करणी सेना के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही गयी। पुरे घटनाक्रम पर करणी सेना ने भी सफाई पेश की। उनका कहना है कि वो संजय लीला भंसाली से बातचीत करने गए थे घंटो तक उनसे मिलने के लिए इंतज़ार भी करते रहे लेकिन वो मिलने को राज़ी नहीं हो रहे थे। हम उनसे इस सीन के बारे में बात कर स्थिति स्पष्ट करना चाहते थे (शांतिपूर्ण ढंग से)। घंटो तक इंतेजार के बाद भी संजय नहीं मिले ऊपर से तैनात गार्ड्स ने बदसलूकी शुरू कर दी इस दौरान फायरिंग भी हुई। जिससे करणी सेना के कार्यकर्ता भी उग्र हो गए, और संजय लीला भंसाली को गालियां देते हुए थप्पड़ भी जड़ दिए गए। शायद चीजो को टाला जा सकता था लेकिन ये ज़िद ही थी जिसने इस विवाद को जन्म दिया।
एक खेल इसके बाद शुरू हुआ...सोशल मीडिया का खेल। बॉलीवुड एक हो कर संजय लीला भंसाली के पक्ष में उतरा, तो हिन्दुओ के हीरो लोग भी करणी सेना के पक्ष में उतार आये, खासकर राजपूत। देश का एक बड़ा तबका करणी सेना के साथ है।
बॉलीवुड के पक्ष से फिल्म की कहानी को लेकर सफाई देना जारी है। इधर अलग अलग राजपूत संगठनो की मांग है कि इस फिल्म का टाइटल ही बदल दिया जाये। आपको बता दें फिल्म का टाइटल रानी पद्मावती के नाम से है। इतिहास कहता है कि पद्मावती उन रानियों में से थी जिन्होंने अपनी अस्मिता को बचाने के लिए आग में कूदकर अपनी जान दे दी थी। उनके बाद अलाउद्दीन और उसके सेना की हैवानियत से खुद को बचाने के लिए 16 हज़ार औरतो ने खुद को मार डाला था। अब आप समझ चुके होंगे की किसी को क्यों आपत्ति हो सकती है।अगर अब भी न समझे तो आपका समय नष्ट करने के लिए मैं क्षमा चाहूंगा।
इस पोस्ट को लिखने में हुई देरी का एक कारन यह भी रहा की मैं इंतेजार कर रहा था कि घटना के बारे में कुछ और तथ्य जान सकूँ दोनों पक्षो की तरफ से। हालांकि दोनों पक्षो के तरफ से उतनी जानकारी नहीं मिली जितनी मुफ्त का ज्ञान बाँटने वालो से मिली। आप उन ज्ञान बाँटने वालो में मुझे भी शामिल कर सकते हैं जब से ब्लॉगिंग शुरू की है मैं भी यही करता हूं। बावजूद इसके मेरी कोशिश होती है कि घटनाओं के साथ पूरा इंसाफ किया जाये।
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