मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

कैसे होगा जय जवान?

    आजकल हमारे देश में सोशल मीडिया पर फौज के जवानों का वीडियो खूब वायरल हो रहा है.... ये वीडियो इतने असरदार होते हैं कि पूरे मुल्क में इन पर बहस छिड़ जाती है... मीडिया को मसाला मिल जाता है और सियासी रहनुमाओं को  आरोप -प्रत्यारोप का नया मुद्दा। हमेशा से यही होता रहा है, मुद्दे बाहर आते हैं... परेशानियां इनक्लाब लाती हैं लेकिन हमारे नेता  इसे पूरी तरह राजनीतिक रंगों से रंग देते हैं। बसंत का मौसम है अब से ले कर फाल्गुन तक अपने लेखों में  रंगों का इस्तेमाल करूँगा।
     खैर,  इन घटनाओं से तो ऐसा ही लगता है कि सब खुद का पल्ला झाड़ लेते हैं, लोगो की फ़िक्र किसी को नहीं है।  यहाँ फौज के जवानों की भी दाद नही दी जानी चाहिए। देश के जनता की सहानभूति पाने के चक्कर में वो अपनी शान और शौकत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं जिसका उन्हें अंदाज़ा तक नहीं है। इस बात का  फायदा हमारे दुश्मन मुल्क के लोग उठा रहे हैं। मेरे कानों में पाकिस्तानी फौज के वो ताने शूल की तरह चुभ रहे हैं।  उस ताने को आप भी याद किजिए जिसमें कहा गया कि भूखे हो तो इस पार आ जाओ... ये ताना बीएसएफ के जवान तेज बहादुर के वायरल वीडियो के बाद मारा गया।
    यहाँ यह भी कहना होगा की सेना के अफसरों और सरकार को भी चाहिए की अपने जवानो का खयाल रखें... कही न कही चूक तो है ही,  बिना आग के धुँआ नही उठता।  कुछ ही दिन पहले पठानकोट में तैनात सेना के जवान मोहम्मद अब्बास की एक खबर पढ़ी की मोहम्मद अब्बास की माँ का इंतेक़ाल हो गया , सेना का जवान उसे अपने  गांव ले जाना चाहता था। सेना के इस जवान को उसके मां की कफन-दफन के लिए साधन मुहैया नही कराया गया। फौजी 10 इंच बर्फ में 32 किमी दूर अपने गांव के लिए निकल पड़ता है, अपनी मां की लाश को कंधे पर लाद कर। जवान का गांव कुपवाड़ा में है। अफसरो का कहना है सेना ने हेलीकाप्टर   की पेशकश की थी लेकिन मोहम्मद अब्बास ने इसे ठुकरा दिया। मोहम्मद अब्बास कहते हैं। उन्होंने सेना से मदद मांगी थी, आश्वासन मिला लेकिन काफी इंतेजार के बाद भी हेलीकाप्टर नहीं मिला तो अपने भाई और कुछ साथियों के साथ पैदल ही अपनी मृत माँ को ले कर निकल पड़ा।
     कुपवाड़ा जिले के अधिकारियों का कहना है कि हम ने अब्बास को हेलीकाप्टर की पेशकश की थी, लेकिन उनके परिवार ने इनकार कर दिया। सेना के अधिकारियों के दावे पर अब्बास ने सवाल उठाए हैं। अब्बास का आरोप है कि कुपवाड़ा शिविर में तो उसका फोन भी नहीं उठाया जा रहा।
   मैं ये खबर टेलीग्राफ में पढ़ रहा था , जिसमे आगे लिखा था  की वे लोग  6 फुट बर्फ से घिरे राजमार्ग से गुजर रहे थे। जहां थोड़ी ही दूरी पर बर्फ के भूस्खलन के कारण लगभग 20 सैनिक मारे गए थे।
    पुरे घटनाक्रम में गलती किसी की भी हो लेकिन उस माँ की तो बिलकुल नहीं थी जो कंधे पर यहाँ से वहाँ ढोई जा रही थी।  जिस जिस्म को कब्र में चैन से लेटना था उसे मरने के बाद भी बर्फीले तूफान से गुज़रना पड़ रहा था। मौसम में खराबी की वजह से सेना चौपर या हेलीकाप्टर का इंतेजाम नहीं कर पाई होगी। या मान भी लें कि सेना की लापरवाही होगी तो भी इतने तामझाम की जरुरत नहीं थी। मौसम ठीक होने का इंतेजार किया जा सकता था।
    अपनी जय जयकार लगवाने के लिए काफी त्याग और परिश्रम करना पड़ता है। याद रखिए शिकायत करने वालो की जयकार नहीं होती। महाराणा प्रताप का पराक्रम उनकी घास की रोटियों से बढ़ता है। भारतीय सेना विपरीत परिस्थितियों में प्रदर्शन के लिए जानी जाती है, त्याग के लिए जानी जाती है, बलिदान के लिए जानी जाती है... शिकायत करने के लिए नहीं।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...