उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड में भाजपा की अप्रत्याशित जीत से मुझे उतना
आश्चर्य नही हुआ जितना मणिपुर और गोवा में हार के बाद की जीत से हुआ। बीजेपी और
उनके समर्थको की खुशी सातवे आसमान के भी पार चली गयी है, और हो भी क्यों नही।
लेकिन कुछ सवाल मेरे मन को और कुछ बातें हमारी लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली पर चोट
कर रही हैं।
ये कैसी विडंबना है कि गोवा और मणिपुर की जनता को उनके शासन अन्तर्गत
रहना पड़ेगा जिन्हें उन्होंने नकारा है। विपक्ष में वो बैठेंगे जिनको वहां की जनता
ने सबसे ज्यादा पसंद किया। मैं वोट शेयर के बेवकुफाना तर्क को नही रखना चाहुंगा,
क्योंकि हमारे देश का लोकतंत्र सीटों के संख्याबल का खेल है। दोनो हीं जगह बीजेपी
दूसरे नंबर पर रही। सीधे शब्दों में कहें तो वहां के जनता की पहली पसंद बीजेपी नही
बल्कि कांग्रेस थी। बद्किस्मती से जनता ने जिसे ज्यादा पसंद किया वही सत्ता में
नही आ सका।
जिन दो राज्यों में सरकार के गठन को लेकर पेंच फंसनी चाहिए थी वहां के
मुख्यमंत्री शपथ ले चुके हैं। जहां की जनता ने दिल खोल कर उनको समर्थन दिया, वहीं
के मुख्यमंत्री पद को लेकर इतना असमंजस?.... भले हीं चंद घंटो में निर्णय ले लिया जायेगा,
लेकिन आप सोंच कर बताइयेगा क्या पहले इन्ही प्रदेशों के मुख्यमंत्री के नाम का एलान नही होना चाहिए था? मैं ट्रोलिंग टीम के लिए भी तैयार हूं लेकिन पहले मुझे वो अपने जबान से ये
समझा दें कि क्या जिन लोगों ने बीजेपी के खिलाफ वोट किया ये उनके निर्णय का
तिरस्कार नही है? राजनीति में मजबूरी का तड़का देखिये,
केंद्र के रक्षा मंत्री यानि केंद्र में 3-4 नंबर की कुर्सी छोड़कर एक 40 एसेंबली
सीटों वाले राज्य के मुख्यमंत्री बनते हैं। उपर से उनके कैबिनेट में ज्यादा तर
मंत्री दूसरे दलों के होंगे, मतलब मुख्यमंत्री जिस दल से
ताल्लुक रखते हैं उसके कम।
इन सबके बीच एक बात तो तय है कि कांग्रेस कमजोर हो गया है और उस पार्टी
का स्तीत्व खतरे में है, जीतने के बाद भी हार जाये उस पार्टी की राजनीतिक क्षमताओं
पर शक करना लाजमी है। पंजाब ने जरुर सूखती कांग्रेस के जड़ो में जल डाला है लेकिन
क्या इसकी जड़ो में वो ताकत है? जो खुद को पुनर्जीवीत कर सके। लोकतंत्र में कसी भी दल का इतना कमजोर हो जाना भी खतरे की घंटी है, भले
ही इसके लिए जिम्मेदैर खुद कांग्रेस ही
क्यों न हो। विरोधी खेमे का विरोध जब राष्ट्रीयता के विरोध में बदलने लगता है उसका अंजाम
यही होता है। खैर ये भारत का लोकतंत्र है। मुझे तो मजा आ रहा है कि ऐसी ऐसी
दिलचस्प घटनाओं का गवाह बन रहा हूं।
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