इश्क किया है जब भी हमने रुसवाई ही मिली...
बेवफाओं से थी उम्मीद, बेवफाई ही मिली...
हर इश्क के बाद नासमझ बदनाम तो हुए..
हर इश्क के बाद मगर एक नयी ग़ज़ल मिली...
मैं बढ़ता गया वो खिसकती गई...
मेरी खुशियां किसी की आंसूओं में तैरती मिली...
रोज़ के सजदों से मिला था जो फूल...
उस फूल में न रंग न खुशबू ही मिली...
पिंजरे में कैद परिंदे को जो जमीं मिली
कभी इस गली चली... कभी उस गली मिली....
तलाश खत्म नहीं हुई कभी मेरी...
पहले वाली जैसी न दूसरी मिली न तिसरी मिली...
बेवफाओं से थी उम्मीद, बेवफाई ही मिली...
हर इश्क के बाद नासमझ बदनाम तो हुए..
हर इश्क के बाद मगर एक नयी ग़ज़ल मिली...
मैं बढ़ता गया वो खिसकती गई...
मेरी खुशियां किसी की आंसूओं में तैरती मिली...
रोज़ के सजदों से मिला था जो फूल...
उस फूल में न रंग न खुशबू ही मिली...
पिंजरे में कैद परिंदे को जो जमीं मिली
कभी इस गली चली... कभी उस गली मिली....
तलाश खत्म नहीं हुई कभी मेरी...
पहले वाली जैसी न दूसरी मिली न तिसरी मिली...
-राजन कुमार झा..
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