सोमवार, 8 जनवरी 2018

रुसवाई

इश्क किया है जब भी हमने रुसवाई ही मिली...
बेवफाओं से थी उम्मीद, बेवफाई ही मिली...

हर इश्क के बाद नासमझ बदनाम तो हुए..
हर इश्क के बाद मगर एक नयी ग़ज़ल मिली...

मैं बढ़ता गया वो खिसकती गई...
मेरी खुशियां किसी की आंसूओं में तैरती मिली...

रोज़ के सजदों से मिला था जो फूल...
उस फूल में न रंग  न  खुशबू ही मिली...

पिंजरे में कैद परिंदे को जो जमीं मिली
कभी इस गली चली... कभी उस गली मिली....

तलाश खत्म नहीं हुई कभी मेरी...
पहले वाली जैसी न दूसरी मिली न तिसरी मिली...
-राजन कुमार झा..

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...