मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

जब कुछ कह नहीं पाता तो लिखता हूँ।

जब खुश होता हूँ तो लिखता हूँ
 जब गम में होता हूँ तो लिखता हूँ।
खो जाता हूँ खुद में तो लिखता हूँ,
 जब  कुछ कह नहीं पाता तो  लिखता हूँ।

शब्दों की दुनिया का एक छोटा सिपाही हूँ,
मुजरिम हूँ मैं और मैं ही गवाही हूँ।
देने को शब्दों के अलावा कुछ नहीं
तोहफा देना हो किसी को तो लिखता हूँ।
 जब कुछ कह नहीं पाता तो  लिखता हूँ।

जीतना हो जग से या हार जाना हो,
मोहब्बत करना हो या एतराज जताना हो।
न गुलाबों का बगीचा है न बारुद का जखीरा
इश्क हो तो लिखता हूँ,  जंग हो तो लिखता हूँ।
 जब कुछ कह नहीं पाता तो  लिखता हूँ।

हंसकर कभी, कभी रोकर
अश्कों में कलम भिगोकर
शब्दों में दर्द पिरोकर
हो कर अभय लिखता हूँ,
 कभी डरता हूँ तो लिखता हूँ...
जब कुछ कह नहीं पाता तो  लिखता हूँ।



NOTE- प्रस्तुत पक्तियां राजन कुमार झा द्वारा रचित हैं। इस पर उनका सर्वाधिकार है।  उनके पूर्वानुमति के बिना कविता की किसी भी पंक्ति को उद्धृत किये जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई होगी।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...