मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

बजट किनके लिए?

बजट आप कितना जानते हैं.... या फिर 20 लाख 22 लाख करोड़ रुपये का हिसाब आप कितना रखते हैं... बचपन से पढ़ते आ रहे हैं, कि भारत किसानों का देश है... पूरी उम्मीद है हमारे पिताजी ने भी स्कूल में यही पढ़ा होगा... लेकिन आने वाली पीढ़ी क्या यही पढ़ेगी... स्कूली किताबों में पढ़ाया जाता है कि आजादी के समय हमारे देश में कृषि मुख्य पेशा थी... नौकरी और व्यवसाय करने वाले कम थे... लगभग 70 से 80 प्रतिशत लोग खेती या खेती से जुड़े कामों पर निर्भर थे... यहां तक कि 1950-51 में सकल घरेलु उत्पाद में कृषि का हिस्सा 60 प्रतिशत था, धीरे धीरे आंकड़े बदलते गए और औद्योगिकीकरण के साथ साथ लोगों की कृषि पर से निर्भरता कम होती गई... अब लगभग 50 से 60 प्रतिशत लोग ही खेती और खेती से जुड़े कामों पर  निर्भर हैं...सकल घरेलु उत्पाद में अब कृषि का योगदान सिर्फ 25 प्रतिशत से भी कम रह गया है... हालांकि खेती पर लोगों की निर्भरता अब भी है.... लेकिन इतनी भूमिका बनाने का औचित्य आपके सामने कुछ तथ्यों को लाना है... एक्सपर्टस के मुताबिक ये बजट किसानों को फायदा पहुंचाने वाला बजट है... लेकिन वास्तव में ऐसा है क्या?  है भी तो किन किसानों को फायदा होगा इस बजट से... संपन्न किसानों को न तो लोन की जरुरत है और न ही फसलों के समर्थन मुल्य की... क्योंकि वो अपनी लागत वसूल कर लेते हैं... मदद की जरुरत छोटे और भूमि हीन किसानों को है... छोटे किसानों ने अपनी ज्यादातर जमीनों को हुंडा या बटैया दे दिया है भूमि हीन किसानों को,,, कुछ भूमि हीन किसान वो हैं जो अपना घरबार छोड़कर पंजाब और हरियाणा के अमीर किसानों के लिए काम करना पसंद करते हैं... कोई अपना घर बार छोड़कर उतनी दूर अगर वही काम करने आयेगा मतलब साफ है कि अपने लिए खेती करने से ज्यादा फायदेमंद दूसरों के लिए मजदूरी करना है... बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश  में खेती के लिए मजदूरों की कमी हो गई है.... इतने दिन से बजट में जो लख करोड़ रुपये सुनाये जाते हैं शायद इन तक नहीं पहुंचते... यही वजह है कि बिहार और इस्ट यूपी का ये वर्ग घर से निकलता है पंजाब हरियाणा दिल्ली के लिए इन शहरों में खेती से जुड़े काम मिले तो ठीक वर्ना रिक्शा ठेला पलदारी या इस तरह के दूसरे पेशों से जुड़ जाते हैं... और कुछ पकोड़े तलने की दुकान भी खोल लेते हैं, उसको आप रोजगार कहें या नहीं लेकिन उनकी रोजी रोटी उसी से चलती है... बीच-बीच में भले ही कमेटी वालों के डंडे खाने पड़ते हों...
सवाल है कि अगर  बजट के लाख करोड़ रुपये सच में इनके लिए खर्च किये जाते तो निश्चय ही बदलाव आता... और त्वरित बदलाव आता... सरकार ने कर्ज देने के लिए 11 लाख करोड़ का फंड बनाने की बात कही है... लेकिन कर्ज से ज्यादा उनकी आमदनी बढ़ाये जाने पर काम करना चाहिए... अब आप कहेंगे कि जेटली साहब ने वादा किया है कि उनकी आमदनी 2022 तक दोगुनी कर दी जायेगी.... पहली बात तो यह है कि सरकार जिस तरह से काम कर रही है 2022 तक यह संभवव ही नहीं है कि उनकी आमदनी दोगुनी की जा सके... मैं बड़े और संपन्न किसानों की बात नहीं कर रहा... बात आत्म हत्या करने वाले और पलायन करने वाले किसानों की हो रही है... आप दोगुनी नहीं सिर्फ उनकी आमदनी हो इसके लिए कदम उठायें... दोगुनी तिगुनी तो बाद की बात है.... अगर ये बात सच है कि यह बजट किसानों को समर्पित है तो उम्मीद है कि 2 फरवरी के बाद से ही देश में किसानों की आत्महत्या और पलायन पूरी तरह खत्म हो जायेगी...
एक और हिदायत थी सरकार को कि जब आप लाख और हजार करोड़ रुपये की राशि कर्ज के तौर पर देते हैं और चुनावों के समय अपने सुवीधानुसार उस कर्जे को माफ कर देते हैं तो बजट में ही क्यों नहीं ऐसा प्रावधान लाते हैं कि गरीब छोटे और भूमिहीन किसानों को ये राशि मदद राशि के तौर पर दे दी जाये....ब्लॉक या गांव स्तर के अधिकारी उस पर नजर रखे कि उस राशि का सदउपयोग भी किया जा रहा है कि नहीं.... अगर सब कुछ ठीक रहा तो किसानों के पास भूमि हो न हो फसल उनकी होगी......
अब आते हैं मध्यमवर्गीय परिवारों पर जिनकी अनदेखी कर दी गई... किसानों पर जब निर्भरता कम हुई है तो स्वाभाविक है नौकरी करने वाले या मजदूरी करने वालों की संख्या बढ़ी होगी... ये लोग ज्यादातर छोटे और मध्यम औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नौकरी करते हैं.... शहरों या नगरों में रहने के बावजूद इनका जीवन स्तर काफी निम्न होता है....वजह पैसों की कमी... अर्थात इन्हें भी सरकारी मदद की आवश्यकता थी, जिसे कम से कम अबकी बार तो नजरअंदाज कर ही दिया गया....
रेल बजट का भी हा वही है....कई लाख करोड़ के बजट के बावजूद रेल के पुराने और जर्जर हो चुके डब्बे में लोग आज भी सफर कर रहे हैं... कई एक्सप्रेस ट्रेनों जिसमें लोग एक दिन से ज्यादा का सफर करते हैं उनमें चार्जिंग की फैसिलीटी तो मिली नहीं लेकिन सीसीटीवी कैमरे और वाई फाई लगाने की बात हो रही है.... रेलवे टिकट की बात करें तो अगर आप बिना एजेंट के एक बार में कन्फर्म टिकट निकाल लेते हैं तो किसी जंग जीतने से कम वाली फीलींग नहीं आती होगी.... वेटिंग लिस्ट वाले तो भगवान को ही टिकट कन्फर्म होने का ठेका देते नजर आते हैं...कई जगह सिंगल लाईन होने और दूसरे कारणों से ट्रेन लेट हो जाती हैं... खासकर सर्दियों में तो 24-24 घंटो की देरी से ट्रेनें चल रही होती हैं कई बार तो इससे भी ज्यादा.... इन तमाम बातों के बावजूद लोगोों में उम्मीदें हैं... ये अच्छी बात है... मंत्री और नेता काम चल रहा है काम होरहा है जैसे बयान देते हैं... हो चुका है सुनने को कम ही मिलता है....
लाखों और करोड़ो का एलान तो हो जाता है लेकिन जमीन स्तर पर इनमें से खर्च कितना हो पाता है देखने वाली बात ये होती है...सच पूछिये तो कई मंत्रालयों का रिकॉर्ड इस मामले में बहुत खराब है गुगल करेंगे तो पता चल जायेगा...इसकी चिंता प्रधानमंत्री को भी है...इस साल बजट पहले लाने की एक वजह ये भी थी...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...