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प्रतिकात्मक तस्वीर |
आपको मेरी बातों पर यकीन हो न हो तथ्यों से मुंह नहीं चुरा सकते. लिट्टे के खात्मे के बाद शांति और स्थिरता की ओर बढ़ रहा श्रीलंका जैसे भीषण आतंकी हमले से दो-चार हुआ वह इस छोटे से देश के साथ पूरी दुनिया के लिए बेहद खौफनाक है. श्रीलंका में हुए धमाकों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली है। लहूलुहान श्रीलंका एक बार फिर कह रहा है कि आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है. यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि आज के समय में इस्लाम की एक विचारधारा आतंक का पर्यायवाची बन चुकी है.
आतंकी संगठनों की बात करें तो अल कायदा, आईएस, तालिबान, बोको हराम, हिज्बुल्ला, हमास, लश्कर-ए-तोइबा, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, अल शबाब, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन इस्लाम की एक विशेष विचारधारा से ही संबंध रखते हैं.
अजीब संयोग है कि पूरी दुनियां में जहां-जहां मुसलमानों की तादाद बढ़ी वहीं-वहीं आतंकवाद का खूनी खेल भी शुरु हुआ. बड़े आतंकवादी हमले तो सबको याद हैं लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें आज की परिस्थिती में समझना बहुत जरुरी है...एक ओर जहां मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू, ईसाई, बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों पर हमले करके उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा है वहीं दूसरी और गैर-मुस्लिम मुल्कों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दहशत और आतंक का माहौल बनाकर वहां से भी गैर-मुस्लिमों, ईसाइयों, बौद्धों, शियाओं, अहमदियों आदि को खदेड़े जाने की साजिश पिछले कई वर्षों से जारी है।
#थाईलैंड
जहां मिली-जुली आबादी हो और मुसलमानों का बहुमत हो वहां अल्पसंख्यकों के प्रति उनका रवैया एक जैसा ही होता है। यानी पहले अपने उग्र रवैये से सामाजिक और मानसिक दबाव बनाना, फिर मार-काट और अंत में अल्पसंख्यकों को खदेड़कर शत-प्रतिशत इस्लामी क्षेत्र बना लेना. थाईलैंड में इसी के चलते वहां 3 दक्षिणी प्रांत- पट्टानी, याला और नरभीवाट- मुस्लिम बहुल (लगभग 80 प्रतिशत) हो चुके हैं.
थाईलैंड के मुसलमानों ने थाई भाषा और जीवन प्रणाली को अंगीकार करने और थाई लोगों से घुल-मिलकर रहने की बजाय पड़ोसी मुस्लिम देश मलेशिया से अपनी निकटता बनाई और मलय भाषा को अपनाकर वे अपने को एक पृथक राष्ट्र के रूप में उजागर करने लगे. थाईलैंड में अलगाववाद का मूल हथियार बनी है इंडोनेशिया आधारित 'जेमाह जमात इस्लामियाह', जिसके गुट अलग-अलग नामों से प्राय: सभी 'आसियान' देशों में फैले हुए हैं. इनका एक ही उद्देश्य है- गैर-मुस्लिमों का सफाया और गैर-मुस्लिम सत्ता से सशस्त्र संघर्ष.
#रुस (चेचन्या)
चेचन्या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. स्थानीय अलगाववादियों और रूसी सैनिकों के बीच बरसों से जारी लड़ाई ने चेचन्या को बर्बाद कर दिया है. चेचन्या पिछले लगभग 200 सालों से रूस के लिए मुसीबत बना हुआ है. जब इस इलाके में मुसलमानों की आबादी बढ़ी तभी से ये अलग होने की मांग कर रहे हैं. रूस लंबे समय से चेचन्याओं के विद्रोह को कुचता आ रहा है. सख्ती के बाद ये लोग शांत हो जाते हैं और कुछ सालों बाद फिर से उत्पात मचाना शुरु कर देते हैं.
अगस्त 1999 में चेचन विद्रोही पड़ोसी रूसी गणराज्य दागेस्तान चले गए और वहां एक मुस्लिम गुट के अलग राष्ट्र की घोषणा का समर्थन कर दिया, जो कि चेचन्या और दागेस्तान के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जा रहा था, लेकिन तब तक रूस में व्लादीमिर पुतिन प्रधानमंत्री बन चुके थे और उनकी सरकार ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी। इसके तहत चेचन्या के लिए नए संविधान को मंजूरी दी गई और चेचन्या को और स्वायत्तता दी गई। मगर ये स्पष्ट कर दिया गया कि चेचन्या रूस का हिस्सा है, लेकिन चेचन्या के विद्रोही या आतंकवादी कहां मानने वाले थे इसलिए लड़ाई अभी जारी है.
#अफ्रीका
अफ्रीका में आतंकवाद तेजी से फैलता जा रहा है. नाइजीरिया अफ्रीका का एक देश है. ब्रिटेन ने सन 1900 से 1960 तक नाइजीरिया पर शासन किया और 1 अक्टूबर 1960 को यह देश आजाद हुआ. नाइजीरिया में जब तक मुस्लिम अल्पसंख्यक थे तब तक वहां आतंकवाद की कोई खास समस्या नहीं थी लेकिन जहां-जहां मुस्लिमों की आबादी बढ़ी, वहां-वहां फसाद और दंगे शुरू हो गए. फिलहाल नाइजीरिया में ईसाइयों की जनसंख्या 49.3 प्रतिशत और मुस्लिमों की जनसंख्या 48.8 प्रतिशत है। अन्य धर्म के लोगों की संख्या 1.9 प्रतिशत है. बोको हराम नाइजीरिया का एक आतंकी संगठन है, जो अपनी बर्बरता के लिए जाना जाता है. यह संगठन उस वक्त दुनिया की नजर में आया, जब इसने नाइजीरिया के एक स्कूल से 250 छात्राओं को अगवा कर लिया था. इस संगठन का आधिकारिक नाम जमाते एहली सुन्ना लिदावति वल जिहाद है जिसका अरबी में मतलब हुआ, जो लोग पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा और जिहाद को फैलाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं.वर्ष 2014 में बोको हराम के हमलों में 6,347 लोग मारे गए थे. साल 2015 के शुरुआत में 1 ही दिन में बोको हराम ने 2,000 लोगों की हत्या कर दी थी. इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के अनुसार बोको हराम के आतंक से अब तक 20 लाख से भी ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़कर भाग चुके हैं. इस लड़ाई का सबसे बड़ा नुकसान ईसाई परिवारों को उठाना पड़ा है. आप समझ सकते हैं एक अल्प संख्यक समाज किस तरह देखते-देखते बहुसंख्यक हो गया.
अफ्रीका के दूसरे देशों में भी जहां-जहां मुस्लिम 35 प्रतिशत से अधिक हैं, वहां-वहां मोर्चा खोल दिया गया है. जगह-जगह हमले हो रहे हैं. सोमालिया, नाइजीरिया, माली, ट्यूनीशिया, मिस्र, चाड, कैमरून आदि की सूची बहुत लंबी है. कई जिहादी संगठन सक्रिय हो गए हैं, जैसे मुजाओ अंसार, अलशरीया, साइंड इन ब्लड बटालियन आदि. उद्देश्य सबका एक है.
सोमालिया, केन्या और अन्य पड़ोसी देशों में सक्रिय अल शबाब नामक संगठन ने पिछले वर्ष 1,012 हत्याओं को अंजाम दिया. इसे अल कायदा का सोमालियाई संगठन भी कहा जाता है. अल शबाब के आतंकियों ने ग्रेनेड और स्वचालित हथियारों से गैरीसा यूनिवर्सिटी के होस्टल में सो रहे छात्रों पर हमला बोल दिया था. हमलावरों की अंधाधुंध गोलीबारी में 147 छात्र मारे गए और 79 से ज्यादा घायल हुए। चश्मदीदों के मुताबिक चरमपंथियों ने ईसाई छात्रों को अलग खड़ा कर गोलियों से भून दिया था. केन्या में 1998 में अमेरिकी दूतावास पर हमले के बाद यह सबसे बड़ा हमला था. अफ्रीका के खूंखार आतंकी संगठन अल शबाब का पूरा नाम हरकत-उल-शबाब अल मुजाहिदीन है। इस चरमपंथी संगठन को साल 2012 में कई देशों ने आतंकी संगठन की श्रेणी में डाल दिया है। अल शबाब का मकसद सोमालिया की फेडरल सरकार को गिराकर इस्लामी सरकार स्थापित करना है।
#यूरोप
फ्रांस की कार्टून वाली घटना ने यूरोप और इस्लाम के बीच चले आ रहे संघर्ष की कहानी को एक बार फिर से ताजा कर दिया. एक बार फिर यूरोप इस्लामिक आतंकवादियों के निशाने पर है. अमेरिकी और यूरोपीय लोग अब यह सोचने लगे हैं कि यूरोप में रह रहे मुस्लिमों से कैसे निपटा जाए. अभी उनकी सबसे बड़ी चिंता इस्लाम के अनुयायियों की बढ़ती हुई जनसंख्या है.
2012 के आंकड़ों के अनुसार विश्व में ईसाइयों की संख्या 2 अरब 20 करोड़ है यानी विश्व की आबादी का 31.5 प्रतिशत, जबकि इस्लाम को मानने वालों की संख्या 1 अरब 80 करोड़ है यानी 25.2 प्रतिशत. लेकिन इस्लाम के अनुयायियों की वृद्धि-दर विश्व की जनसंख्या में वृद्धि-दर से दुगुनी है और यूरोपीय शोधकर्ताओं के अनुसार यह दिशा बनी रही तो 2050 तक दुनिया में ईसाई मतावलंबियों की तुलना में इस्लाम को मानने वाले 1 प्रतिशत अधिक होंगे. अमेरिका और यूरोप में अभी उनकी संख्या अधिक नहीं है, पर तेजी से बढ़ रही है और 2030 तक दुगनी हो जाएगी. 1900 में वे विश्व की जनसंख्या का 12.50 प्रतिशत थे और आज 25 प्रतिशत से अधिक हैं.
जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ अब धीरे-धीरे गैर-मुस्लिम बहुल क्षेत्र यूरोप में भी आतंकवाद फैलने लगा है. फ्रांस, जर्मन, ब्रिटेन और स्पेन के मुस्लिम बहुल क्षेत्र के युवा आतंकवाद की ओर आकर्षित होकर अपने ही देश के खिलाफ जिहाद में शामिल होने लगे हैं. दूसरी ओर यूरोप के जिन देशों ने जिन मुसलमानों को शरण दे रखी थी उन्हीं झुंड में से भी अब आतंकवादी निकलने लगे हैं.
कुछ महीनों पहले फ्रांस में एक गिरजाघर में हुए आतंकवादी हमले से यूरोप के लाखों लोगों में आतंकवाद के खतरे का डर समा गया है. इसके बाद पेरिस और फिर नीस में हुए हमले से यह पुष्टि हो गई कि फ्रांस के ही मुस्लिमों के सहयोग से इन हमलों को अंजाम दिया गया. फ्रांस के नीस शहर में जब एक व्यक्ति ने बास्तील डे के उत्सव के लिए जुटी भीड़ को एक ट्रक से रौंद दिया था इस घटना को भूला नहीं जा सका है. इस घटना में 84 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से भी अधिक घायल हो गए थे.
पिछले साल ब्रिटेन में 299 संदिग्ध आतंकवादियों को हिरासत में लिया गया था, जो इसके भी पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा थे. ब्रिटेन के अधिकारियों ने सितंबर 2001 से आतंकवाद से जुड़े आंकड़े इकट्ठा करना शुरू किया था जिसके बाद से यह सर्वाधिक संख्या है.
#इसराइल और फिलिस्तीन
इसराइल और फिलिस्तीन के बीच सालों से गाजा और यरुशलम पर कब्जे को लेकर लड़ाई जारी है. यहूदी पश्चिम एशिया के उस इलाके में अपना हक जताते थे, जहां सदियों पहले यहूदी धर्म का जन्म हुआ था और जहां वे संख्या में बहुल थे। यही वो जमीन थी, जहां ईसाइयत का जन्म हुआ. इस्लाम का उदय होने के बाद इस क्षेत्र पर उनका कब्जा हो गया. आज जिसे गाजा कहते हैं, यहूदियों के दावे वाले इसी इलाके में मध्यकाल में अरब फिलिस्तीनियों की आबादी बस चुकी थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसराइल से खदेड़े गए यहूदियों को पुन: इसराइल में बसाया गया और यह मुल्क उनके सुपुर्द कर दिया गया. इसके बाद आज तक यहूदियों की इस्लाम से जंग जारी है. इस गाजा पट्टी पर अपने अधिकार को लेकर जंग के लिए हमास नामक आतंकवादी संगठन का उदय हुआ.
'हमास' का मतलब है 'हरकत उल मुकवामा अल इस्लामियास।' यह फिलिस्तीन का सामाजिक-राजनीतिक आतंकवादी संगठन है, जो मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में 1987 में स्थापित किया गया था। इस संगठन का जिहाद इसराइल के खिलाफ है और इसका मकसद इसराइल से फिलिस्तीन की आजादी को सुरक्षित रखना है। इसे आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है.
#चीन
चीन का प्रांत शिनजियांग एक मुस्लिम बहुल प्रांत है। जबसे यह मुस्लिम बहुल हुआ है तभी से वहां के बौद्धों, तिब्बतियों आदि अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो गया है। अब यहां छोटे-छोटे गुटों में आतंकवाद पनप चुका है, जो चीन से आजादी की मांग करते हैं। हालांकि हर वो चीज जिससे देश को खतरा महसूस हो, चीन उसे रोकने में देर नहीं लगाता, फिर चाहे उस पर दुनिया में कितना ही बवाल मचे या उसका विरोध हो। चीन ने जिस सख्ती के साथ वहां आतंकवाद को कुचला है उसकी कोई निंदा नहीं करता है।
#भारत
भारत को लेकर इनकी नीति स्पष्ट है. पहले चरण में मंदिरों को गिराया गया. फिर मस्जिदों का निर्माण हुआ. फिर कहीं तलवार के दम पर तो कहीं प्रलोभनों से भारत में धर्मपरिवर्तन का खेल शुरु हुआ. मैं इसके इतिहास में नहीं जाना चाहता यह आपको बखूबी पता है कि अफगानिस्तान से लेकर तिब्बत वर्मा समेत इस विशाल भूखंड के टूकड़े-टूकड़े कर के बड़े-बड़े इस्लामिक देश बना दिये गए. भारत संकुचित होता जा रहा है. फिर भी हम कहते फिर रहे हैं...
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी... सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा...
हमारी हस्ती ख़तरे में है सबूत आपके सामने है... केवल 100 वर्ष पहले के जनसांक्यिकी आंकड़े पढ़ लीजिए और भारत का मानचित्र आज के मानचित्र से मिला लीजिए, स्थिती स्पष्ट हो जायेगी.
90 की दशक में कश्मीर में हुआ नरसंहार कोई आम नरसंहार नहीं था. जिसमें 6,000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया. 7,50,000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया. 1,500 मंदिर नष्ट कर दिए गए. 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामी नाम दिया गया. बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन कराये गए. केंद्र की रिपोर्ट अनुसार कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59,442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं. कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे. अब उनकी संख्या काफी कम हो गई है.
कुछ लोग आतंकवाद को इस्लाम के साथ जोड़ने का विरोध करते हैं. यह सत्य है कि इस्लाम को मानने वाले सभी लोग हिंसक नहीं हैं.
लेेकिन वे यह नहीं बताते कि क्या वजह रही कि हिंदुस्तान में मुसलमान फले फूले आबादी के दोगुने हो गए और अफदानिस्तान पाकिस्तान में हिंदु समाप्त हो गए? वे यह नहीं बताते कि बांग्लादेश में क्यों हिदुओं के सफाये का अंतिम चरण चल रहा है? क्यों कश्मीर में घाटी मुस्लिम बहुत होते ही भारत विरोधी हो गई और हिंदुओं को वहां से सफाया हो गया? क्यों रुस के मुस्लिम बहुल क्षेत्र रुस से अलग हो गए या अलग होने की लड़ाई लड़ रहे हैं? क्यों यूगोस्लाविया खँडित हो गया?क्यों दुनियां भर के मुसलमान इजराइल का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं? क्यों दुनियां का हर मुस्लिम बहुल क्षेत्र अपनी मातृभूमि को खंडित कर देने में संकोच नहीं करना चाहता? आखिर चेचन्या, दागेस्तान, कोसवो, कश्मीर सबकी एक जैसी स्थिती और एक जैसे कारण क्यों हैं? इस्लाम का अगर आतंकवाद से संबंध नहीं है तो आईएस के झंडों पर लिखे संदेश क्या वेद और पुराणों से लिये गए हैं?
क्या वजह है कि हिंदुस्तान के मुसलमान जितने कसाब से प्रभावित दिखते हैं उतने कलाम से नहीं?
पहले की गलतियों से सीख नहीं ली गई तो परिणाम भयावह होंगे... शुरुआत कश्मीर से हो चुकी है. पहले चरण में मस्जिदों की तादाद बढ़ाना, दूसरे में कश्मीर से गैरमुस्लिमों और शियाओं को भगाना और तीसरे चरण में बगावत के लिए जनता को तैयार करना. अब इसका चौथा और अंतिम चरण चल रहा है। अब सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते हैं और सरेआम भारत की खिलाफत की जाती है, क्योंकि कश्मीर घाटी में अब गैरमुस्लिम नहीं बचे और न ही शियाओं का ज्यादा वजूद है. निद्रा से न जागे तो कश्मीर हाथ से जायेगा जिसके बाद अगला टारगेट जम्मू, पंजाब और दिल्ली होगा.
कहने का अर्थ यह है कि तैयार रहिए....
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