गुरुवार, 2 मई 2019

आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को खुली छूट दी जा सकती है तो नक्सलियों के खिलाफ क्यों नहीं?

    बीते कुछ समय से नक्सली जिस तरह नए सिरे से सिर उठाते दिख रहे हैं, वह गंभीर चिंता का कारण बनना चाहिए-न केवल नक्सल ग्रस्त राज्यों के लिए, बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी. नक्सलियों की ओर से रह-रहकर अंजाम दी जा रही इस तरह की खूनी घटनाएं यही बताती हैं कि वे आंतरिक सुरक्षा के लिए अभी भी गंभीर खतरा बने हुए हैं. एक आंकड़े के अनुसार बीते पांच वर्षों में करीब तीन सौ जवान नक्सलियों का निशाना बन चुके हैं.
बर्बर नक्सलियों ने एक बार फिर अपना खूनी चेहरा दिखाया. इस बार उन्होंने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में पुलिस के त्वरित कार्रवाई दस्ते के एक वाहन को बारूदी सुरंग से
उड़ा दिया. इसके चलते 15 जवानों के साथ एक वाहन चालक वीरगति को प्राप्त हुआ.

गढ़चिरौली की वारदात पुलवामा की आतंकी घटना की याद दिला रही है. मीडिया और देश के नेताओं ने ख़ासकर भाजपा ने जिस तरह से इस ख़बर की अनदेखी की है वह क्षम्य नहीं है. मसूद अजहर को यूएन ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकी माना है जो वह है. उसे फांसी पर नहीं लटकाया.  मीडिया ने मसूद अजहर के खबर पर प्रकाश डालकर नक्सलियों के हमले में मारे गए जवानों की शहादत के साथ खिलवाड़ किया है. इस पर केंद्र की सरकार और राज्य की सरकारों से सवाल होने चाहिए.

आखिर जब आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को खुली छूट दी जा सकती है तो नक्सलियों के खिलाफ भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?  आखिर उनके दुस्साहस का पूरी तौर पर दमन कब होगा? नि:संदेह इस सवाल का भी जवाब मिलना चाहिए कि नक्सली बार-बार एक ही तरह से सुरक्षा बलों को निशाना बनाने में सक्षम क्यों हैं? यह कहना समस्या का सरलीकरण करना है कि नक्सली भटके हुए लोग है. वे भटके हुए लोग नहीं, नृशंस हत्यारे और निर्मम लुटेरे हैं. वे गरीबों के नाम पर उगाही के साथ खूनी खेल खेलने में लगे हुए हैं. उनके प्रति नरमी दिखाना दरअसल उनका हौसला बढ़ाना है.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...