
81 साल की बुजुर्ग निर्मला भट्ट... सरकार के दिये गए 2 कमरों के घर में रहती हैं... उनकी आखिरी इच्छा है कि वे अपने पुरखों के घर और अपनी मातृभूमि में लौटना चाहती हैं वहीं अपनी अंतिम सांसे लेना चाहती हैं. निर्मला की ही तरह न जाने कितने बुजुर्ग आस लिये दुनियां से चले गए. अपना घर बार होते हुए भी जिंदगी रास्तों पर टेंट में गुजार दी. आज कश्मीर की चिंता करने वालों ने कभी इनके लिए दो शब्द नहीं कहे होंगे....
शरणार्थी महिला निर्मला भट्ट कहती हैं 'मरने से पहले, मैं अपने पहले घर में लौटना चाहती हूं.. लेकिन यह घर अब एक मुस्लिम परिवार के अवैध कब्जे में है... निर्मला ने कहा, 'प्रत्येक कश्मीरी पंडित को एक दिन अपने घर लौटने की उम्मीद है. अपनी मातृभूमि लौटने की आस में निर्मला ने कहा 'हमने शुरू में शरणार्थी शिविरों में रहकर अपने बच्चों की परवरिश के लिए कठिन संघर्ष किया है. अब मेरे पास नाती-पोते हैं, वे भी हमारी मातृभूमि में लौटना चाहते हैं।' सवाल है कि निर्मला जैसी बुजुर्गों की तरह न जाने कितने लोग होंगे जिनके घरों को हड़प लिया गया होगा. पता करना आवश्यक है ये वही लोग तो नहीं जो कैमरे पर गंगा जमुना तहजीब की बात करते हैं? क्या ये लोग वहीं हैं जो कश्मीरीयत जम्हूरियात इंसानियत की बात करते हैं? पता कीजिए...
कश्मीर में 370 हटने के बाद से देश की मीडिया ने इसे अब तक सकारात्मक बनाये रखा है वहीं मीडिया का ऐसा वर्ग जिसे बाहर से एक विशेष उद्देश्य के लिए फंड किया जाता है ने पूरी जिम्मेदारी से न सिर्फ कश्मीर बल्कि भारत की नकारात्मक तस्वीर दुनियां के सामने लाने की पूरी कोशिश की है. ये लोग मुद्दों की तलाश में होते हैं ताकि भारत और यहां के मूल निवासियों को बदनाम कर के उन्हें हीन भावना का शिकार बनाकर दबा कर रख सकें. परंतु जब तक हम जैसे कलम के मित्र उपस्थित हैं आपको दिग्भ्रमित नहीं होने देंगे. बल्कि आवाज को अपने कलम की शक्ति देंगे.
दोस्तों इस समय कश्मीर को लेकर बहस के दौरान आपको तर्क दिया जाता होगा कि इस फ़ैसले(आर्टिकल 370 हटाये जाने से) से कश्मीर की तस्वीर बदल जाएगी, उसकी ‘असली संस्कृति’ गुम जाएगी. कश्मीर पर बोले जा रहे सभी झूठों में इससे बड़ा झूठ नहीं हो सकता... क्योंकि जो कश्मीर ये बता रहे हैं कश्मीर असल में वो नहीं है...
हज़ारों वर्ष से कश्मीर में हिन्दू आते रहे, बसते रहे और यहाँ की संस्कृति को और गाढ़ा करते रहे, फ़ीका नहीं. कश्मीर की संस्कृति यह कभी नहीं रही कि बाहर से आने वालों पर रोक-टोक लगाई जाए. केरल से आए शंकराचार्य को शारदा पीठ ने (जो जिहादियों के चंगुल में गुलाम कश्मीर में है) सिंहासन पर बिठा लिया. दुनिया भर के मंत्र साधक शिव मंत्रों की साधना के लिए यहाँ आते थे, और यहीं बस जाते थे.
कश्मीर की संस्कृति लाउडस्पीकर से हिन्दुओं को डराने के लिए चिंघाड़े जा रहे जिहादी नारों की संस्कृति नहीं, “नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनि। त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे ॥” की संस्कृति है. काल भैरव और मार्तण्ड मंदिर की संस्कृति है..हिन्दू धर्म में इतिहास के किसी एक बिंदु को ‘बाप’ मानने की बात ही नहीं है, लेकिन अगर तय करना ही हो तो कश्मीर के ‘बाप’ ऋषि कश्यप हैं, शेख अब्दुल्ला या उनकी गुंडई से बना 370 नहीं; कश्मीर की माई देवी शारदा हैं, न कि आसिया अंद्राबी या महबूबा मुफ़्ती.
कश्मीर को लेकर एक वर्ग झूठ औऱ प्रोपगेंडा फैलाने की कोशिश कर रहा है.इनका मकसद केवल भारत की बुराई नहीं, बल्कि ‘हिन्दू फ़ासीवाद’, ‘डरा हुआ मुसलमान’ के दुष्प्रचार से हिन्दुओं को बदनाम करने के साथ दबाए रखना, और ‘इस्लाम खतरे में है’ के हौव्वे को भड़काकर जिहाद को बढ़ावा देना है...
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