बुधवार, 4 सितंबर 2019

सीवी ही तो मांगी है...

रोमिला थापर से सीवी मांगा जाना चर्चे में है. रोमिला थापर वही हैं जिन्होंने भारत का इतिहास अपने कल्पनाओं और विचारों से मिलाकर लिखा है. खैर बहस इस बात पर है कि रोमिला थापर से सीवी मांगा जाना गलत है या सही? इसका जवाब है कि आखिर रोमिला थापर से सीवी क्यों न माँगी जाए? आखिर वामपंथी इस पर क्षुब्ध क्यों हैं? पूरे चर्चे से एक ही नाम पर आपत्ती है बाकि के दर्जन भर और प्रोफेसरों से माँगे गए सीवी से कोई मतलब नहीं है.
संक्षेप में आपको पूरा प्रकरण समझा दूं. जेएनयू की  एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने इस बात पर गौर करते हुए, अन्य बातों को ध्यान में लेते हुए, प्रोफेसर एमेरिटस (या एमेरिटा) के पद हेतु नियम तय किए ताकि कई प्रोफेसर जो दूसरे विभागों से रिटायर हो चुके हैं, उनके अनुभव और शिक्षण से भी यूनिवर्सिटी लाभान्वित हों.साथ ही, ध्यान देने योग्य बात यह है कि नियम यह भी बनाया गया कि 75 की उम्र के बाद ऐसे प्रोफेसरों के पदों की समीक्षा होनी चाहिए और देखना चाहिए कि उनका स्वास्थ्य आदि उन्हें इस योग्य बनाता है कि वो यूनिवर्सिटी के क्रियाकलापों में अपना बेहतर योगदान दे सकें. इस हेतु सीवी मँगाना इस प्रक्रिया का हिस्सा है.
अब रोमिला थापर को ये बात चुभ गई कि उनसे, जिसने भारत का इतिहास लिखा है, उससे सीवी माँगी जा रही है.इस पर हो-हल्ला मच गया और बहुत सारे लोग आहत हो गए, क्योंकि आहत होना हमारा राष्ट्रीय उद्योग है. आहत होने वालों को रोमिला थापर के अलावा दर्जन भर और प्रोफेसरों से माँगे गए सीवी से कोई मतलब नहीं है.
मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि जब सीवी में कोई समस्या नहीं है तो इसे अपने सम्मान पर लेने जैसी कौन सी बात हो गई?
अब रोमिला के इतिहास की बात कर लेते हैं. जब इतनी बातें हो रही हैं तो...
रोमिला थापर ने जो इतिहास लिखा है उस पर अगर  चर्चा करें तो पर पता चलता है कि उन्होंने कल्पनाशीलता के आधार पर तथ्य बना दिया. बच्चों की किताबों में इतिहास पहुँचाने वाली रोमिला थापर से यह पूछा जाना चाहिए कि भारत के अनेकों राजाओं और राजवंशों के इतिहास को चंद पन्नों में समेटने के पीछे, और इस्लामी आतंकियों के परपोतों के प्रेमसंबंधों तक को पढ़ाने और अंग्रेजों के पापों को सामान्यीकृत करने के पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा?
 रामचंद्र गुहा और थापर जैसों से पूछना चाहिए कि जिस गजनवी ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया था उसके हिम्मत की दाद देने वाली, कभी न हार मानने वाली बात को हमें बचपन में क्या सोच कर पढ़ाया जाता रहा? क्या अपने ही देश पर सत्रह बार आक्रमण कर, मंदिर लूटने वाले, गाँव जलाने वाले, बलात्कारी और आतंकी लुटेरे को भारत के बच्चे प्रेरक कहानी मान कर पढ़ें कि देखो वो तुम्हारे पूर्वजों का बलात्कार करने के लिए, तुम्हारे मंदिर तोड़ने के लिए सत्रह बार तक प्रयासरत रहा… इसका जवाब कौन देगा?
ये इताहासकार भूल जाते हैं कि ये इतिहास हमारा है, अंग्रेज़ों को पढ़ाने के लिए नहीं है. इनको इतनी इज्जत आखिर क्यों कि सीवी माँग लिया तो ऐसे बात हो रही है जैसे अब तो कयामत आएगी और कब्रों से लाशें निकलकर सड़कों पर पैदल चलने लगेंगी.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...