ऐसा नहीं है कि आज प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं बोला। दो साल से यूपी के सभी गाँवों को साल भर के भीतर बिजली देने का वादा करने वाले प्रधानमंत्री ने बिजली को सांप्रदायिक रंग दे दिया।”रमज़ान में बिजली आती है तो दिवाली में बिजली आनी चाहिए। भेदभाव नहीं होना चाहिए।” ये प्रधानमंत्री के शब्द हैं। क्या वाक़ई ऐसा हुआ है? तथ्य क्या हैं ? क्या हमारी राजनीति इस स्तर पर पहुँच गई है कि बिजली को भी हिन्दू मुसलमान में बाँटेगी। यूपी के लोग याद करें कि क्या वाक़ई दिवाली में ऐसा हुआ था?....
ये लेख एनडीटीवी के स्टार पत्रकार रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर लिखे गए हैं। वहां रवीश कुमार ने ANI का हवाला भी दिया है। ANI अपडेट्स मैं भी देखा करता हूँ, लेकिन कुछ भी लिखे जाने से पहले क्रॉस चेक ज़रूरी है।
गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए, रमजान में बिजली आती है तो दीवाली में भी बिजली आनी चाहिए, होली में बिजली आती है तो ईद में भी बिजली आनी चाहिए। किसी के साथ धर्म और जाति के आधार पर भेद-भाव नही होना चाहिए..... ये भाषण प्रधान मंत्री ने यूपी के फतेहपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिया था। साफ-साफ पता चलता है किस तरह प्रधानमंत्री के बात को काट कर पेश किया गया।
क्या पत्रकारिता ऐसी होनी चाहिए? अब निर्णय आपको करना है क्या पत्रकारिता का ये ढ़ंग सही है। क्या अधूरी जानकारी दे कर लोगों को गुमराह करना पत्रकारिता है। हमारे देश में पत्रकारिता को लेकर आये दिन बहस छिड़ी रहती है। भक्त पत्रकार, डिजाइनर पत्रकार जैसे धड़े बने हुए हैं। अपने-अपने संस्थानों के स्वादानुसार इन जैसे पत्रकार हर पल खबरों के साथ बलात्कार कर रहे हैं। बात किसी को सपोर्ट करने या किसी को टारगेट करने की नही है। बात सच्चाई और झूठ की है। एक पत्रकार होने के नाते हमें तटस्त होना चाहिए। सरकार की जितनी हो सके कमीयां निकालनी चाहिए लेकिन इसका आशय यह नही की हम न्यूज को डिजाईन करने लगें। उसको काट छांट कर बात का बतंगड़ बना कर लोगों के सामने पेश कर दें।
बेशक मोदी जी ने आपके मन के मुताबिक भाषण नही दिया होगा। उत्तर प्रदेश के चुनावी सभा में अरुणाचल का जिक्र नही हुआ। आप क्या करेंगे उनके भाषण को ही गलत सलत पेश कर देंगे। आप अपने उदाहरण देखिये... नेहरु जी के घटना का जिक्र किया आपने...तो रवीश जी आप ये बतायें कि अब यूपी के चुनाव में अरुणाचल का कंडिडेट खड़ा ही नही हुआ तो उसके खिलाफ कैसे भाषण हो। आप तो इस तरह बात कर रहे हैं मानो मोदी जी अरुणाचल के मुख्यमंत्री के लिए वोट मांगने गए हों। आप प्रधानमंत्री पर हिंदु मुसलमान करने के आरोप लगा रहे हैं...? हिंदु मुसलमान तो आप कर रहे हैं। आप भड़का रहे हैं लोगों को जरा सी सहानभूति के लोभ में। हिंदुओं के तारिक फतह जी आपका फतवा नही चलेगा। आपकी झूठ नही चलेगी। इसी तरह एक्सपोज होते रहेंगे और आपकी गरीमा जाती रहेगी।
विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बयानबाज़ी करेगा। प्रधानमंत्री को घेरा जायेगा। एक झूठ पर कई झूठ बोल जायेंगे। नतीज़तन हो वो जायेगा जिसकी चिंता तथाकथित सेक्युलरों और विपक्ष और कुछ डिज़ाइनर पत्रकारों को है। इसका कारण प्रधानमंत्री नहीं जिम्मेदार यही लोग होंगे।
रवीश कुमार जैसे पत्रकार भी अपने पेशे के साथ न्याय नही कर पा रहे हैं। पत्रकारिता को लेकर बड़े-बड़े भाषण देते हैं उसकी बुराईयां कर के लोगों की सहानभूति और तालियां बटोर लेते हैं और न्यूजरुम में या अपने ब्लॉग पर आकर वही काम करते है। दोहरा चरित्र लिए कहां तक फिरेंगे। आपसे जब सवाल होता है तो मंचो से लेकर ब्लॉग तक में तूफान खड़ा कर देते हैं। कई बार तो मेरी सहानभूति भी ले उड़े। आप जिस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं आपके साथ ट्रोलिंग होने पर मुझए कोई आश्चर्य नही है।
जो लोग आपको फॉलो कर के कुछ सीखने की उम्मीद कर रहे हैं उनपर अभी से दया आ रही है मुझे।
ये लेख एनडीटीवी के स्टार पत्रकार रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर लिखे गए हैं। वहां रवीश कुमार ने ANI का हवाला भी दिया है। ANI अपडेट्स मैं भी देखा करता हूँ, लेकिन कुछ भी लिखे जाने से पहले क्रॉस चेक ज़रूरी है।
गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए, रमजान में बिजली आती है तो दीवाली में भी बिजली आनी चाहिए, होली में बिजली आती है तो ईद में भी बिजली आनी चाहिए। किसी के साथ धर्म और जाति के आधार पर भेद-भाव नही होना चाहिए..... ये भाषण प्रधान मंत्री ने यूपी के फतेहपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिया था। साफ-साफ पता चलता है किस तरह प्रधानमंत्री के बात को काट कर पेश किया गया।
क्या पत्रकारिता ऐसी होनी चाहिए? अब निर्णय आपको करना है क्या पत्रकारिता का ये ढ़ंग सही है। क्या अधूरी जानकारी दे कर लोगों को गुमराह करना पत्रकारिता है। हमारे देश में पत्रकारिता को लेकर आये दिन बहस छिड़ी रहती है। भक्त पत्रकार, डिजाइनर पत्रकार जैसे धड़े बने हुए हैं। अपने-अपने संस्थानों के स्वादानुसार इन जैसे पत्रकार हर पल खबरों के साथ बलात्कार कर रहे हैं। बात किसी को सपोर्ट करने या किसी को टारगेट करने की नही है। बात सच्चाई और झूठ की है। एक पत्रकार होने के नाते हमें तटस्त होना चाहिए। सरकार की जितनी हो सके कमीयां निकालनी चाहिए लेकिन इसका आशय यह नही की हम न्यूज को डिजाईन करने लगें। उसको काट छांट कर बात का बतंगड़ बना कर लोगों के सामने पेश कर दें।
बेशक मोदी जी ने आपके मन के मुताबिक भाषण नही दिया होगा। उत्तर प्रदेश के चुनावी सभा में अरुणाचल का जिक्र नही हुआ। आप क्या करेंगे उनके भाषण को ही गलत सलत पेश कर देंगे। आप अपने उदाहरण देखिये... नेहरु जी के घटना का जिक्र किया आपने...तो रवीश जी आप ये बतायें कि अब यूपी के चुनाव में अरुणाचल का कंडिडेट खड़ा ही नही हुआ तो उसके खिलाफ कैसे भाषण हो। आप तो इस तरह बात कर रहे हैं मानो मोदी जी अरुणाचल के मुख्यमंत्री के लिए वोट मांगने गए हों। आप प्रधानमंत्री पर हिंदु मुसलमान करने के आरोप लगा रहे हैं...? हिंदु मुसलमान तो आप कर रहे हैं। आप भड़का रहे हैं लोगों को जरा सी सहानभूति के लोभ में। हिंदुओं के तारिक फतह जी आपका फतवा नही चलेगा। आपकी झूठ नही चलेगी। इसी तरह एक्सपोज होते रहेंगे और आपकी गरीमा जाती रहेगी।
विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बयानबाज़ी करेगा। प्रधानमंत्री को घेरा जायेगा। एक झूठ पर कई झूठ बोल जायेंगे। नतीज़तन हो वो जायेगा जिसकी चिंता तथाकथित सेक्युलरों और विपक्ष और कुछ डिज़ाइनर पत्रकारों को है। इसका कारण प्रधानमंत्री नहीं जिम्मेदार यही लोग होंगे।
रवीश कुमार जैसे पत्रकार भी अपने पेशे के साथ न्याय नही कर पा रहे हैं। पत्रकारिता को लेकर बड़े-बड़े भाषण देते हैं उसकी बुराईयां कर के लोगों की सहानभूति और तालियां बटोर लेते हैं और न्यूजरुम में या अपने ब्लॉग पर आकर वही काम करते है। दोहरा चरित्र लिए कहां तक फिरेंगे। आपसे जब सवाल होता है तो मंचो से लेकर ब्लॉग तक में तूफान खड़ा कर देते हैं। कई बार तो मेरी सहानभूति भी ले उड़े। आप जिस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं आपके साथ ट्रोलिंग होने पर मुझए कोई आश्चर्य नही है।
जो लोग आपको फॉलो कर के कुछ सीखने की उम्मीद कर रहे हैं उनपर अभी से दया आ रही है मुझे।
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