हमारे देश के किसान आये दिन अखबारों और
टेलिविजन के न्यूज बुलेटिन्स का हिस्सा बनते हैं। उनमें से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,
उत्तरप्रदेश के किसानों पर हम न्यूज वालों का फोकस ज्यादा होता है। ये खुशी की बात
नहीं है क्योंकि हम किसानों के खुशहाली की कम और उनके बदहाली की खबरें ज्यादा
देखते-दिखाते, पढ़ते-पढ़ाते हैं। इन दिनों हर रोज किसानों का आंदोलन टीवी पर
दिखाया जा रहा है। हमारे देश के अन्यदाता महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश तक सड़कों
पर उतर आये हैं उन्होंने दूध की नदियाँ बहा दी हैं। कुछ इसी अंदाज में ये किसान
अपने लिये कर्ज की माफी की मांग कर रहे हैं।
हड़ताल कर रहे किसान कहीं सड़कों पर दूध
बहाते नजर आ रहे हैं तो कहीं सब्जियां फेंककर रास्ता रोकते। सरकार से नाराज
किसानों का मकसद है उपभोक्ताओं तक माल न पहुंचने देना।
सच पूछिये तो मुझे उनका ये अंदाज बिलकुल पसंद
नहीं आया। उनसे हमदर्दी के बजाय मुझे उनपर क्रोध आ रहा है। इस तरह आहार को नष्ट
करना क्षम्य नहीं हो सकता। हमारे देश में जहां आज भी नजाने कितने बच्चों को दूध
नसीब नहीं होता, आज भी देश में हजारों बच्चे कूपोषित हैं वहाँ अपने लिए हुए कर्ज
की माफी के लिए इस तरह का आचरण नीति संगत नहीं हो सकता। आश्चर्य इस बात का है कि
उनके खिलाफ लिखने या उनसे ये सवाल पूछने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखायी। मैं तो
शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विरोध करने वालों को भी तलाश रहा हूँ।
किसानों के विरोध जताने का तरीका शिरडी के एक शख्स से सीखना चाहिए। शिरडी में यह शख्स दूध को बर्बाद नहीं कर रहा, बल्कि लोगों में बांट रहा है। ग्रामीण इलाके में यह
बाइकसवार बच्चों में मुफ्त दूध बांट किसान कर्जमाफी और अन्य मुद्दों को लेकर सरकार
के रुख का विरोध कर रहा है। इस शख्स को मेरा सलाम है।
हड़ताली किसान बाजारों में सब्जियां और
डेयरियों में दूध नहीं पहुंचने दे रहे हैं। मुंबई
समेत राज्य के तमाम शहरों में दूध, फल और
सब्जियों की सप्लाई थम गई है। खाने-पीने की चीजों का संकट पैदा हो गया है। किसान
सरकार से कर्जमाफी और बेहतर खरीद मूल्य चाहते हैं। किसानों ने एक हफ्ते तक हड़ताल
करने का फैसला किया है, आज
दूसरा दिन है। सोचिये किसान सरकार से खफा हैं या आम लोगों से।
किसानों के साथ मेरी पूरी हमदर्दी है लेकिन खाने पीने की चीजों को बर्बाद कर रहे
ये किसान एक प्रश्न का जवाब दें...क्या इन किसानों को जबरन उनके घर में घूस कर
कर्ज दिया गया था, या किसानों ने अपनी इक्षा से इसके लिए आवेदन दिये और महकमों के
चक्कर लगाये थे?
किसानों की बदहाली की खबरे टेलीविज़न स्क्रीन पर रहने को वजूहात बहुत सारी है राजन जी , शायद किसानों की खुशहाली दिखाने के लिए हमारे पास वजूहात है ही नही , खैर हमेशा को तरह इस बार भी एक अच्छा लेख है आपका
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