गुरुवार, 22 जून 2017

बिहार सांचो नाही सुधरी का हो?

   
पटना
                बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के मैट्रिक के रिजल्ट घोषित कर दिये गए। कुल 50.12 फीसदी विद्यार्थी सफल हुए हैं। इसमें 21.21 प्रतिशत छात्राएं और 28.91 प्रतिशत छात्र शामिल हैं। उड़ते उड़ते ये खबर आयी कि बिहार बोर्ड के मैट्रिक टॉपरों में पहला स्थान रखने वाले को
एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया जायेगा। क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले विद्यार्थी को 75 और 50 हजार रुपये दिये जायेंगे। साथ ही लैपटॉप और ई बुक रिडर भी दिये जायेंगे।

              परिणामों ने किसी को खुशी दी तो किसी की आंखे नम रहीं। हालांकि अभी तक तो हमारे बुद्धिमान जर्नलिस्टों ने  टॉपर्स का इंटरव्यू करने के लिए कैमरे के लेंस साफ कर लिए होंगे। मैं उन जर्नलिस्टों से आग्रह करुंगा कि अपने कैमरे को उस दिशा में मोड़ें जहां साफ दिखता है कि नाइंसाफी हुई है। यदि आपको संच की पड़ताल ही करनी है तो मैं बताता हूँ कि क्या कवर किजिए। अब आप कहेंगे खुद जर्नलिस्ट हो क्यों नहीं करते?
दरअसल मैं डेस्क पर हूँ। बहुत जल्दी फिल्ड पर नजर आऊंगा।

            बिहार से  होने के नाते इस साल कुछ परिणाम चेक करने का अवसर मुझे भी मिला। कुछ परिणामों ने मुझे इतना प्रभावित कर दिया कि मैं विचलीत हो उठा। दरअसल एक विद्यार्थी जिसने लगभग 80 प्रतिशत अंक प्राप्त किये हैं, उसके एक विषय (संस्कृत) में सिर्फ 02 अंक हैं। अर्थात हर विषय में लगभग 70-80 और एक विषय में सिर्फ 02 अंक? (Roll code-56012, Roll no.1700122) बात मेरे गले से तो नहीं उरती। लाखओं छात्रों में से न जाने कितनो के साथ बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ये भद्दा मज़ाक कर रही है। क्या समिति के सैंकड़ो पदाधिकारियों के आंखों में इस तरह के रिजल्ट खटकते नहीं है। अगर कहीं चूक हो भी गई तो क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि इसे खुद संज्ञान में लेते हुए गलती सुधारी जाय। उन छात्रों और अभिभावकों को पटना के चक्कर लगाने से बचायें जायें। वो इंतेजार करते हैं कि दूर दराज के इलाकों से सैंकड़ो किलोमीटर दूर जाकर फॉर्म भरकर पैसे जमा करवा कर परेशान हों। फिर उसपर विचार विमर्स होगा। आखिर क्यों? गलती आपकी है परेशान विद्यार्थी या उसके अभिभावक क्यों हों? बिहार सांचो नाही सुधरी का हो?

     इसके पहले भी साल 2006 में मेरे एक मित्र के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसके कुल अंको का प्रतिशत 85 था लेकिन गणित में उसे सिर्फ 19 अंक मिले थे और वो असफल घोषित कर दिया गया। पटना शहर में स्थित बोर्ड के कार्यालय के कईं चक्कर लगाने के बाद उसका अंक 19 से बढ़कर 91 हो गया। इस बीच उसकी परेशानी का जिम्मेदार कौन? इस घटना के बाद से मेरे उस मित्र का दिमागी संतुलन बिगड़ गया। आज अपने घर में जंजीरों से बंधा वो होनहार विद्यार्थी किसी लायक नहीं रहा।

        मैं मीडिया के मित्रों से पूछना चाहूंगा आप दिन भर स्टोरी के तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं, इस तरफ आपका ध्यान क्यों नहीं जाता? हमेशा ध्यान में रखिये आपकी बनाई स्टोरी से समाज में परिवर्तन होना चाहिए, लोगों को फायदे भी होने चाहिए। मसालेदार खबरों से खुद को और लोगों को मत ठगीये। कुछ काम भी कर लीजिए।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...