शनिवार, 1 जुलाई 2017

घर मेरा बिहार है...



रग रग में दौड़े राजनीति आँखों में जहाँ अंगार है....
पंडित धुरंधर विप्र विद्वानों की जहाँ भरमार है ।
नफरत नहीं, जहांँ हर सीने में समाहित प्यार है...
बाबू राजेन्द्र प्रसाद की धरती, घर मेरा बिहार है।


जान देने को  हिंदुस्तान पर जहाँ बच्चा-बुढ़ा तैयार है।
फाग झूमर बिरहा निर्गुण और जुबाँ पर मल्हार है।
ठन जाये जो दुश्मन से, लड़ाई आर-पार है....
बाबू वीर कुँवर सिंह की धरती, घर मेरा बिहार है।


सुख-दुःख बंटते सब मे बराबर, जहाँ गाँव एक परिवार है।
लाज,शर्म संस्कार जहाँ घूंघट में अलंकार है...
नारि को कहते देवी जहाँ, सभ्यता बरकरार है..
स्त्रीओत्तम सीता की धरती, घर मेरा बिहार है।


आलस का जहाँ कोई स्थान नहीं मेहनत की जयजयकार है...
चाँदी से चमकते हलों में अब भी तलवारों सी धार है।
ठान लिए जो कर के माने कर्मठता हथियार है...
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की धरती, घर मेरा बिहार है।  


उतरीया पछुआ कभी, कभी पूरवईया बहे बयार है...
जेठ की गर्मी पूस की ठंडक, जहाँ सावन की बौछार है।
दलहन तिलहन खरीफ रबी जहाँ सबकी पैदावार है।
मैथिल कोकिल विद्यापति की धरती, घर मेरा बिहार है।


-राजन कुमार झा







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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...