सोमवार, 7 अगस्त 2017

मुझे अपना बना पाओगी क्या...?



मैंने ठुकराया है जमाने को..
राजन कुमार झा
सुनो मुझे अपना बनाओगी क्या?

खुले आसमानों में फिरता हूँ जी भर
मुझे दिल में अपने समाओगी क्या?

सुनता हूँ सबकी पर करता हूँ मन की...
मुझे जिंदगी भर झेल पाओगी क्या?

रुठता हूँ अक्सर मैं हो कर खफा,
प्यार से मुझको कहो मनाओगी क्या?

सूखी हैं आँखे बारिश के बाद
ऐ तुम भी मुझे रुलाओगी क्या?

बिन बरसे सावन बीत गया
बदरी की तरह छा जाओगी क्या?

 मैं  खड़ा हूँ अंधेरों में कहीं,
 चिराग लिये वहीं आओगी क्या?

 निवाले निगलते हैं, पर भूखे हैं हम,
अपनी हाथों से मुझे कुछ खिलाओगी क्या?

सोती हैं आँखें जागता हूँ मैं,
मुझे अपने गोद में पल भर सुलाओगी क्या?

सपने हैं आँखों में कहीं खोये हुए,
ढूँढ़ कर उन्हें कहीं सजाओगी क्या?

सो जाऊँ अगर ख्यालों में तुम्हारे...
नींद से फिर मुझे जगाओगी क्या? 

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...