शनिवार, 12 अगस्त 2017

रोज होते हैं गोरखपुर जैसे नरसंहार



गोरखपुर में बच्चों की मौत पर विभिन्न लेख और राजनीतिक, समाजिक टिप्पणियों के बाद आपका ध्यानाकर्षण भारत में शिशु मृत्यु से जुड़ी कुछ बिंदुओं पर चाहुँगा.....
हिंदुस्तान टाइम्स के साल 2015 में आये एक लेख में छपा कि भारत में हर साल 7 लाख नवजातों की मौत होती है।
इसी रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि दुनियां में हुए नवजातों की मौत का 26% अकेले भारत में होता है। इन मौतों की बड़ी वजह ऑक्सिजन की कमी नहीं बल्कि बच्चों का कमजोर जन्म लेना और समय से पहले जन्म लेना पाया गया, एनडीटीवी के एक रिपोर्ट के मुताबिक।
जिस तरह गोरखपुर मेडिकल अस्पताल में हुई मौतों पर राजनीति और पत्रकारिता हुई, उन्हें निराशा हाथ नहीं लगेगी यदि वो मुजफ्फरपुर (बिहार) के केजरीवाल हॉस्पिटल पहुँचे। यकीनन रोज के 10-12 शिशुओं की मौत की खबर मिल जायेगी, आँकड़ा 5 दिन में 50 का हो जायेगा. IT WILL BE A BIG BREAKING. आप सितामढ़ी के जिला अस्पताल जाईये वहाँ आपको और बड़ी खबरें मिलेंगी। मौतों का आंकड़ा बढ़ता मिलेगा। शिवहर में उसे भी ज्यादा... मेरे उदाहरण में ये बिहार के क्रमशः छोटे हो रहे शहर हैं। इनका नाम इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि यहाँ के हालात मेरे आंखों देखे हैं। इसी तरह देश भर के शहरों अस्पतालों का आकलन करते रहिए। बिहार के गाँवों में तो सैंकड़ो नवजात मौतें ऐसी होती हैं जिनकी खबरें घर से बाहर नहीं आ पाती। ये मौतें आंकड़ों के बाहर की होती हैं। वहाँ के प्रदेश सरकारों से इस्तेफी की माँग कीजिए.... ये आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन कुपोषण और स्वच्छता की बात नहीं कीजिएगा, क्योंकि ऐसा करने से इनका राजनीतिकरण ठीक से नहीं हो पायेगा संभव है।
संभव है ऑक्सीजन की कमी से गोरखपुर में शिशुओं की मौतें हुई हों, लेकिन यकीनन इसकी जड़ें कहीं और हैं। वहाँ मरम्मत हो गई तो आगे सब अपने आप सुधरने लगेगा।


मेरे कुछ मित्र पिछले पोस्ट में निहित मेरे विचारों से सहमत नहीं है. उनकी समस्या राजनीतिक है। बच्चों की मौत का गम हमे भी उतना ही है। इसलिए हमने कोशिश की समस्या के तह तक जाने की। हो सकता है मेरी समझ कमजोर है। मेरी कमजोर समझ कहती है कि समस्या बच्चों का ठीक होना नहीं है, बल्कि बीमार होना है. हम कुपोषण की बात क्यो नहीं करते जो बाल मृत्यु दर की सबसे अहम वजह है? आखिर क्यों हमारे देश में कमजोर बच्चे जन्म लेते हैं? क्यों बड़ी संख्या में बच्चे बिमार होते हैं? हम जन्म के समय बरती जाने वाली लापरवाही पर भी ध्यान नहीं देते। हमारा केन्द्र मौजूदा सरकार पर होता है। एक वर्ग इंतजार कर रहा होता है कि उन्हें मौका मिले और वो सरकार पर हमले बोले चुनाव में मनपसंद उम्मीदवारों के हार की भड़ास निकालें, दूसरा वर्ग होता है सरकार का रक्षक जो किसी भी शर्त पर अपन मनपसंद नेता की बुराई नहीं सुन सकता। कोई भी मिल रहे इंतेजाम और सुविधाओं पर सवाल नहीं उठाता। आश्चर्य है कि इतने बड़े देश या प्रदेश के एक जिले के एक अस्पताल में हुई लापरवाही के लिए उस संस्थान के प्रशासन से ज्यादा दोषी मौजूदा सरकार को करार दे दिया जाता है। सरकारें आती जाती रहती हैं। लेकिन अस्पताल यथावत होते हैं। मूल समस्या उच्च जन्मदर, गरीबी अशिक्षा और लापरवाही है। जो सरकारों के आने जाने के बावजूद बनी रहती हैं। क्योंकि ये राजनीतिक नहीं समाजिक समस्यायें हैं। जो हम ही से ठीक होंगी। दोष देना, आरोप प्रत्यारोप ये नेताओं को करने दीजिए। हम मूल समस्या को खत्म करने की तरफ ध्यान दें तो कदाचित उचित होगा। लापरवाही बरतने वाले नेताओ, अफसरों पर कार्रवाई जरुर हो निःसंदेह हो। लेकिन उससे भी जरुरी समाजिक व्यावस्था में सुधार की है। हम हों आप हों सब अपनी अपनी राजनीतिक विचारों के साथ घटनाओं को आंकने की कोशिश करेंगे तो न्याय नहीं कर पायेंगे।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...