शनिवार, 2 सितंबर 2017

न्यू अशोकनगर की मधुशाला


मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ...
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।।
यकीन मानिये इस इलाके से जब भी गुजरता हूँ हरिवंश राय बच्चन की लिखी ये पक्तियाँ जरुर गुनगुनाता हूँ। दरअसल यहाँ कईं सरकारी मदिरालय हैं। जहाँ बिना किसी भेद-भाव के हर वर्ग के लोग मदिरा के एक बोतल के लिए जद्दोजहद करते नजर आते हैं। पोस्ट में पीनेवालों की कोई बुराई नहीं करुंगा। लेकिन पीने के तरीकों पर टिप्पणी जरुर करुंगा। कुछ लोग शराब खरीदने के बाद अपने स्थान को न जा कर वहीं मादक हाला बनाना शुरु कर देते हैं। कुछ की स्थिती इन श्रीमान जैसी हो जाती है, जो नशे में किंचड़ से भरे रास्ते को अपना गद्देदार बिस्तर समझ रहे हैं।
इस कुत्ते को भी पता है रास्ता अभी शराबियों से पटा हुआ है इसलिए चक्कों के बीच एडजस्ट होने की कोशिश कर रहा है। दिन भर के भूखे कुत्तों के लिए शराबी अपने आधे नोचे हुए मांस,मछली और हड्डी के टुकड़े छोड़ जाते हैं। शाम के समय पीनेवालों की ही नहीं कुत्तों की भी दावत होती है।
खैर मज़ाक से परे देखें तो लोगों ने यहां के बाजार और रास्तों को ही अपने पीने का अड्डा बना लिया है। उपरोक्त कविता के पंक्तियों की तरह पूरे इलाके को मदिरालय बना दिया है। गजब की बात तो ये है कि किसी को यहां पुलिस का डर भी नहीं है। जबकि नोएडा और दिल्ली पुलिस के जवान अक्सर यहां देखे जाते हैं। इन मतवालों की वजह से यहां इतनी मात्रा में गंदगी होती है कि जिसका आप अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं। इसके अलावा दिन-दहाड़े शराब पीकर गाली-गलौच और लड़ाई-झगड़े तो यहाँ आम बात है। पिजिये लेकिन पलटिये नहीं। और ये पंक्तियाँ गुनगुनाईये....

बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...