शुक्रवार, 24 मई 2019

सूरत में बचाई जा सकती थी कई मासूमों की जान..

           
दुर्घटनाओं को रोक पाना हमारे वश में नहीं है परंतु हमारे हाथ में उसकी विभीषकता को कम करने की क्षमता ईश्वर ने हमें दी है. इसके लिए हमें संवेदनशील होना पड़ेगा. खेद है कि हम मनुष्यों में संवेदनशीलता के स्थान पर संवेदनहीनता ने अपना घर कर लिया है. उसका एक उदाहरण आज आपने सूरत में देखा होगा. आग सूरत के तक्षशिला कंपलेक्स को श्मशान बना रही थी. आग लग जाने के बाद जो बच्चे चौथी मंजिल से अपनी जान बचाने के लिए कूद रहे थे उनके दोनों तरफ मौत थी. अपनी जान बचाने के लिए बच्चे अंतिम समय तक जद्दोजहद करते रहे लेकिन जब उनकी कोमल त्वचा आग से झुलसने लगी तो उन्होंने चौथी मंजिल से कूदने का निर्णय लिया. तब तक उन बच्चों के कई मित्र आग में झुलस चूके थे. बच्चे उपर से जान बचाने के लिए छलांग लगा रहे थे और लोग वीडियो बना रहे थे. एक आध को छोड़कर बाकी सभी लोग मौत का तमाशा देख रहे थे. एक के बाद एक बच्चे गिरते रहे लोग वीडियो बनाते रहे शोर मचाते रहे. किसी ने भी पहल नहीं की. टीवी पर एक व्यक्ति दिखा जो दावा कर रहा था कि उसने कई बच्चों को लपकने की कोशिश की. उसकी सराहना की जानी चाहिए. 4 मंजिला इमारत के नीचे खड़े होकर ये लोग अगर एक साथ मिलकर श्रृंखला बनाते और बच्चों को लपकने की कोशिश करते तो शायद कुछ की जान बच सकती थी... ये लोग अगर कहीं से भी कपड़ों का जाल बनाकर बच्चों को उसमें कूदने को कहते तो भी शायद कुछ घरों के चिराग बुझने से बच जाते. फायर ब्रिगेड वाले अगर पूरी तैयारी के साथ समय पर घटनास्थल पहुंच जाते तो शायद एक भी जान नहीं जाती. लेकिन पहले तो वे 45 मिनट की देरी से घटना सथ्ल पर पहुंचे और पहुंचे भी तो उनके पास सिर्फ चौथी मंजिल तक पहुंचने के लिए इंतजाम नहीं थे. कई घंटों के बाद चार मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी मंगवाई गई. तब तक 19 घरों के चिराग बुझ चुके थे. उम्मीद है इसे पढ़ने के बाद हमारे संवेदनहीन लोगों की संवेदना जागेगी और आगे से संकट की स्थिती में वे दूसरों की जान बचाने में अपना सहयोग प्रदान करेंगे.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...