
गृह मंत्री बनने के बाद से ही अमित शाह कश्मीर को लेकर लगातार बैठक पर बैठक किये जा रहे हैं. इस बाबत उन्होंने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से भी मुलाकात की. ख़बरों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए आयोग बनाने पर विचार किया जा रहा है. जम्मू कश्मीर में इसके पहले 1995 में परिसीमन किया गया था. उसी साल राज्यपाल जगमोहन के आदेश पर रियासत में 87 सीटों का गठन किया गया था जिसमें 46 सीटें कश्मीर डिविजन को 37 सीटें जम्मू को औ 4 सीटें लद्दाख डिविजन को दी गईं थीं.
जम्मू-कश्मीर की दो बड़ी क्षेत्रिय पार्टियां नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी नहीं चाहती कि राज्य में परिसीमन हो इसके लिए उन्होंने साल 2002 में ही बड़ी चालाकी से खांका तैयार कर लिया था. दरअसल जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान है. इस संविधान के अनुसार हर 10 साल बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए. ऐसे में साल 1995 के बाद रियासत में सीटों का परिसीमन 2005 में होना था लेकिन राज्य में 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस सरकार ने इस पर 2026 तक रोक लगा दी थी. अब्दुल्ला सरकार ने जे एंड के जन प्रतिनिधित्व कानून यानी (J&K REPRESENTATION OF THE PEOPLE ACT,1957) और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसले को सही ठहराया था.
अब फिर से परिसीमन के प्रयास किये जाने की बात चल रही है. इसके अलावा पीओके की 24 सीटों पर भी चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है. आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें हैं लेकिन 24 खाली हैं. दरअसल ये सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है. जिन्हें जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक खाली छोड़ा गया है. बाकी 87 सीटों पर चुनाव होता है. भाजपा सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के तर्ज पर पीओके के उन लोगों के लिए चुनाव की व्यवस्था करवाने की सोच रही है जो पीओके से राज्य के दूसरे हिस्सों में आकर बस गए हैं. आपको ये भी बता दें कि विस्थापित कश्मीरी पंडित एम फॉर्म के जरिये देश के किसी अन्य क्षेत्र में रहते हुए अपना वोट दे सकते हैं.
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