बुधवार, 12 जून 2019

हम कितने स्वार्थी हो गए हैं?

सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति।
तुलसीदास रचित रामचरितमानस के इन दोहों का इस्तेमाल कभी भारतीय संतानों पर तंज करने के लिए भी किया जायेगा इसकी कल्पना संभवतः स्वयं तुलसी दास जी ने भी कभी नहीं की होगी. आज की सच्चाई यही है कि माता-पिता को भगवान मानने वाले देश में उनपर होने वाले अत्याचार दिन पर दिन बढते जा रहे हैं.  सबसे अधिक मामले वृद्ध माता-पिता को असहाय छोड़ने के सामने आ रहे हैं.  
 बिहार मंत्रिमंडल की मंगलवार को हुई बैठक में फैसला लिया गया कि बिहार में रहने वाली संतानें अगर अब माता-पिता की सेवा नहीं करेंगी तो उन्हें जेल की सजा हो सकती है. माता-पिता की शिकायत मिलते ही ऐसी संतानों पर कार्रवाई होगी.बिहार मंत्रिमंडल की बैठक में लिये गए इस फैसले की चर्चा देश भर में है.  नीतीश कुमार की अध्यक्षता में लिए गए इस फैसले पर देश भर में उनकी सराहना की जा रही है. इस फैसले का एक और पहलू है जिसपर गौर करना अत्यंत आवश्यक है.मातृ-पितृ भक्ति में आदर्श मानी जाने वाली भारतीय संतानों की स्थिति यह हो गई है कि अब कानून बनाकर माता-पिता की सेवा करवाये जाने की तैयारी चल रही है. अर्थात  अब आज की संतानें माता-पिता की सेवा कानून के डर से करेंगी स्वेच्छा से नहीं.
ऐसा नहीं है कि पहल नीतीश कुमार ने की है.वर्तमान में भी मेनटिनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन ऐक्ट-2007 के तहत माता-पिता अपने लिये न्याय की मांग कर सकते हैं.  वर्तमान कानून के तहत बुजुर्गों को अधिकार दिया गया है कि वह 10,000 रुपये अपने बच्चों से ले सकते हैं. अगर बच्चे ऐसा करने से इनकार करते हैं तो वे मेंटिनेंस ट्राइब्यूनल जा सकते हैं.  
आये दिन समाचार पत्रों और टेलिविजन पर माता-पिता पर होने वाले अत्याचार सामने आते रहते हैं.  सबसे अधिक अत्याचार उन अविभावकों पर होता है जो काम करने या कमाने लायक नहीं होते हैं.  यह दर्शाता है कि भारतीय संताने कितनी स्वार्थी होती जा रही हैं.   
श्रवण कुमार और पुण्डलिक के देश में बढ़ते वृद्धाश्रमों की संख्या बताती है कि माता-पिता के प्रति हमारी निष्ठा कितनी कम होती जा रही है.  श्रवण कुमार का उदाहरण आज भी आदर्श पुत्र के रुप में दिया जाता है. पुण्डलिक की भक्ति से कौन परिचित नहीं है जिन्होंने माता-पिता के विश्राम में विघ्न उत्पन्न न हो इसलिए भगवान विष्णु को एक ईंट पर खड़ा कर प्रतीक्षा करने को कहा था.  उसी देश में आज की संतान अपने कर्तव्यों से विमुख होकर स्वार्थी जीवन व्यतीत कर रही है.  गांवों की तुलना में शहरों की स्थिती इस मामले में और भी खराब है. कईं समाज शास्त्री इसके लिए पश्चिमीकरण को तो कई आधुनिकतावाद को दोषी ठहराते हैं.  
इस मामले में हमें भूटान जैसे देश से सीखने की आवश्यकता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भूटान में एक भी वृद्धाश्रम नहीं हैं और यहां के लोगों का मानना है कि हमारे समाज में ऐसी जगह होनी भी नहीं चाहिए. भूटान के चिंतक डॉ. सांगडू छेत्री कहते हैं यह समाज के लिए कलंक है. जिस मां ने हमें जन्म दिया उस मां को हमें वृद्धाश्रम में छोड़ना पड़ता है. 
हम भूल चुके हैं कि हमारे देश में माता ममत्व एवं पिता अनुशासन के प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं, इसलिए उपनिषदों में लिखा गया है 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव'. उपनिषद संतान को  माता-पिता को प्रत्यक्ष देवता मानकर उनकी सेवा भक्ति करने का आदेश देते हैं. लेकिन वेदों और उपनिषदों की बात करना इस देश में प्राचीनता का प्रतीक बनता जा रहा है. अफसोस की आज के मॉडर्न बच्चे तभी तक माता-पिता के प्रति स्नेह का भाव रखते हैं जब तक माता-पिता में उनकी आश्यकताओं को पूरा करने का सामर्थ्य होता है.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...