बुधवार, 30 नवंबर 2016

न मैं मायूस होता हूँ, न ही शिकायत करता हूँ..

न मैं मायूस होता हूँ,
न ही शिकायत करता हूँ।

अपनों को सदा अपना ही कहा,
उनसे दूर होने की नहीं हिमाकत करता हूँ।

तुम दुनियां को दिखाती रहो जलवे हुस्न के,
मुझे फर्क नहीं पड़ता न मैं शिकायत करता हूँ।

मुझे अपना बना न बना ये तेरी ख़ुशी,
अकेले पन से तो कभी तुझसे बगावत करता हूँ।

शामें और राते भी दिन ही हैं मेरे लिए,
और दिन को तो बस तुझसे मोहब्बत करता हूँ।

ज़ख्म हो तो हो भले सीने में दफ़न,
मैं न उफ़ करता हूँ न ही शिकायत करता हूँ।।

Note-  इस गजल से जुड़े सर्वाधिकार राजन कुमार झा के पास हैं. इस गजल के किसी भी हिस्से को राजन कुमार झा की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...