राम मंदिर की लड़ाई लड़ रहे साधु संत ही अगर राजनीति से प्रभावित होकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगानें लगे और मंदिर मामले को लेकर विभिन्न संत समाज के बीच मतभेद उतपन्न होने लगे तो मंदिर का निर्माण कैसे होगा?
29 जनवरी को कुंभ मेले में हुई तीन दिनी परमधर्मसंसद के समापन पर राम जन्मभूमि पर इष्टिका न्यास अर्थात वेदों के अनुसार मंदिर निर्माण के पहले की जाने वाली शास्त्रीय विधि की तिथि घोषित की गई। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दो टूक कहा कि वसंत पंचमी के बाद प्रयागराज से अयोध्या के लिए किसी भी दिन कूच किया जाएगा और 21 फरवरी को अयोध्या में इष्टिका (ईंट), शिला पूजन किया जाएगा। परम धर्म संसद के बाद गुरुवार को कुंभनगरी में वीएचपी की धर्म संसद शुरु हुई। इस धर्म संसद में वीएचपी से जुड़े साधु-संत आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास और योग गुरु रामदेव पहुंचे। इस दौरान साधु-संतों ने परम धर्म संसद को नकली करार दिया। गुरुवार को हुए धर्म संसद में जगदगुरु स्वामी हंसदेवाचार्य ने कहा कि नकलची लोग हमारी धर्म संसद की नकल करके देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका इशारा परमधर्म संसद की अगुआई कर रहे स्वामी स्वरुपानंद की तरफ था। दरअसल स्वामी स्वरुपानंद कांग्रेस के करीबी बताये जाते रहे हैं कई बड़े और दिग्गज कांग्रेसी नेता स्वरुपानंद के शिष्य हैं।
सवाल किसी के गुरु या शिष्य होने का नहीं है। बात संत समाज के एकता की है। संत समाज और साधुवर्गों के मध्य का ये विभाजन ठीक नहीं है। आखिर एक ही लक्ष्य होने के बावजूद यह मतांतर समझ से परे है। पहले तो दो अलग-अलग धर्म संसद बुलाया जाना निर्रथक है? तद्उपरांत एक दूसरे के प्रति वैमनस्यता दुर्भाग्यपूर्ण है।
होना तो यह चाहिए कि संत समाज एक होकर धर्म संसद बुलाये।अलग-अलग धर्म संसद बुलाये जायें परंतु उसमें सभी संस्थानों और साधु-संतो का शामिल होना सुनिश्चित किया जाये और एक मत से फैसले लिये जायें, आयोजनों में एक संस्थान या पीठ के द्वारा लिए निर्णय सर्व मान्य हों। उस निर्णय को संत समाज ही नहीं बल्कि पूरे सनातन समाज से संबंधित व्यक्ति को मानना आवश्यक हो। अगर किसी विषय पर मतभेद की स्थिती हो तो उसपर परिचर्चा हो। एकमत बनाया जाये। इस तरह एक दूसरे को असली-नकली कहने से सनातन एकता कमजोर होगी। जिससे हमारा विघटन होगा। इतिहास साक्षी है हमारी कमजोर एकता की वजह से ही हम पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों के गुलाम हुए।
अगर स्वरुपानंद सरस्वती जी ने 21 फरवरी को राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का प्रस्ताव पास किया है तो यह हर्ष का विषय है और सभी सनातनी संस्थाओं को उनके इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए। उनके इस आवाहन पर सभी हिंदुओं को एक होकर राम मंदिर निर्माण कार्य में अपनी भागिदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
याद रहे हमारे आराध्य एक हैं हमारा खून एक है, लक्ष्य एक है।
जय श्री राम
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