गुरुवार, 28 मार्च 2019

कश्मीर के आतंकियों को कौन कहता है स्वतंत्रता सेनानी?


          कश्मीर में भारतीय फौज की तैनाती वहां के आजादी के समर्थकों को ही नहीं खटकती बल्कि देश के दूसरे प्रांतो में बैठे गद्दारों को भी खटकती है. वे एक स्लीपर सेल की तरह प्रतीक्षा में हैं कि कब मौका मिले और अपने विष से 50 शताब्दियों से भी पुराने इस देश की संस्कृति को नष्ट कर दे. ये वही लोग हैं जो खुले आम जेहाद की बात की आलोचना करते हैं लेकिन भीतर से उसके संरक्षक और शुभ चिंतक होते हैं. ये हमारे और आप के बीच बैठे हैं, इनका आभास समय-समय पर होता सबको है लेकिन सब इसे अनदेखा कर रहे हैं, जिसकी कीमत हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतनी पड़ेगी. मैं जिनकी बात कर रहा हूं ये वही लोग हैं जो इस देश के हर बड़े शहर में एक इलाके को मिनी पाकिस्तान बनाये हुए हैं. मैं जिनकी बात कर रहा हूं ये वो लोग हैं जो दिन के उजाले में इस देश का होने की दम भरते हैं और रात के अंधेरे में इस देश के दुश्मनों के लिए दुआएं मांगते फिरते हैं. ये वो लोग हैं जो कश्मीर के आतंकियों का यह कहकर बचाव करते हैं कि वे अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं? 
यह सवाल जितना घातक है उतना ही उदार और सरल इसका जवाब है. यह देश 1947 में आजाद हुआ कोई नया देश नहीं है बल्कि हमारी पहचान 50 शताब्दी पहले से रही है. तब हमने इस देश को बनाया. अपने संस्कारों और उच्च जीवन शैली से इसे संपन्न किया. शताब्दियों तक हमारी सनातन जीवन पद्धति का निर्माण हुआ. वेद उपनिषद बने. दुनियां की सबसे पुरानी सभ्यता बनी. हम शीर्ष पर थे कि कुछ लुटेरे हमारी उदारता और आतिथ्य का फायदा उठाकर छल और बल पूर्वक हम पर आक्रमण करते हुए हमारी सभ्यता संस्कृति और जीवन शैली पर आघात करते गए. कुछ लोगों ने स्वेच्छा से तो कुछ ने मौत के डर से अपना धर्म परिवर्तन कर लिया. फिर अंग्रेज आये. हमारी संस्कृति को दोहरी मार पड़ी. अब हमारी लड़ाई अंग्रेजों से भी थी.  सैकड़ों सालों तक जो लुटेरे अपने देश न लौट सके उन लोगों ने इस देश को अपना लिया और अंग्रेजों के साथ स्वाधिनता की लड़ाई में स्वार्थ के मारे ही सही हमारे साथ खड़े रहे. उनके देखा देखी कुछ और लोग स्वाधीनता के लिए आगे आये. परंतु उनकी इच्छा कुछ और थी. वे चाहते थे कि आजादी के बाद इस धरती के टूकड़े कर के उसपर अपना अधिपत्य जमा लें. उस धरती के जो उनकी थी ही नहीं. हुआ भी ऐसा ही आजादी की लड़ाई में सहभागिता और देश पर अपना अधिकार बताकर लुटेरों ने देश के टूकड़े कर दिये. यह बंटवारा पूर्णतः इस्लाम के नाम पर किया गया बंटवारा था. अब देश भर से मुसलमान जो हिंदुस्तानी और राष्ट्रवादी होने का गर्व करते थे पाकिस्तान की तरफ कूच करने लगे. कुछ को रोक लिया गया तो कुछ मजबूरी और भय के मारे नहीं जा पाये. कुछ ने इस देश को ही अपना समझा जिनकी तादाद उस वक्त कम थी अब और कम हो चुकी है. 
 हमारे देश में कुछ मुसलमान धर्मांतरित हैं, खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर इसके साक्ष्य भी हैं और कुछ लोगों ने आगे आकर इस सच्चाई को स्वीकार भी किया है. कुछ लज्जित होकर इसे नहीं मानते. और हमें सबसे बड़ा ख़तरा इन्हीं से है. वे अधिक कट्टरता दिखाते हैं. ताकि एक खास धर्म के प्रति वफादारी का प्रदर्शन हो सके. हमारे देश पर हुए ज्यादातर बाहरी आक्रमणकारियों ने इस देश के प्रचीन रहन सहन की पद्धति को अपना लिया और उन्होंने देश की संस्कृति में अपनी अमिट छाप छोड़ी. लेकिन सदियों तक साथ रहने के बावजूद देश के मुसलमान, पारसी और इसाईयों और मूल निवासियों(हिंदुओं)  के बीच कोई सांस्कृतिक मेल नहीं है. इस्लाम और इसाई धर्म की पुराण-कथाओं के नायक, उनके वस्त्र और उनकी भाषा हिंदुस्तान के बाकी धर्मों से अलग है. इसमें कोई रहस्य नहीं की इसकी वजह ऐतिहासिक हैं.  ये धर्म हिंदुस्तान की ज़मीन से नहीं उपजे हैं बल्कि बाहर से आये हैं. किसी मुसलमान, इसाई या पारसी के लिए पावन-धरती हिंदुस्तान नहीं है बल्कि दूर देशों में है. काफी हद तक संभव है कि ज्यादातर मुसलमान, भारत और अरब के बीच युद्ध की स्थिति में उस देश के प्रति सहानुभूति दिखायेंगे जहाँ पर मक्का-मदीना हो. वे इस देश को कभी अपना मानेंगे नहीं इसलिए कश्मीर के आतंकी उन्हें स्वतंत्रता सेनानी ही नजर आयेंगे.उनकी हिम्मत दिन प्रतिदिन बढ़ती जायेगी आज दबी आवाज में देश के खिलाफ षडयंत्र करने वाले लोग कल खुलकर आपकी आंखों में आंखे डालकर आपको ललकारेंगे.  जिस संस्कृति की रक्षा हमने हजारों सालों तक की है उसके अस्तित्व को बचाने की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने का समय आ चुका है तभी हमारी और आने वाली पीढियों की रक्षा हो सकेगी. आजादी के समय तो सैकड़ों सालों से लड़ाई लड़-लड़ कर कमजोर हो चुके देश के मूल निवासी आपसी और विदेशी संघर्षों से थक चुके थे. उन्हें संगठित होने के लिए समय चाहिए था. अतः जिन लोगों के पास अंग्रेजों ने सत्ता सौंपी उसी को स्वीकार कर लिया गया. साथ ही उन गद्दारों को भी स्वीकार करना पड़ा जो आज स्लीपर सेल की तरह देश को तोड़ने के इंतेजार में हैं, जिनका जिक्र मैने पहले भी किया. उस वक्त तो हम अपने अस्तित्व की लड़ाई में उलझे हुए थे अतः मातृ-भूमि  के विभाजन को सहना पड़ा. आज हमें संगठित हो कर दुश्मन की दुष्ट चालों को कामया होने से बचाना है. चाहे दुश्मन घर में छिपा स्लीपर सेल हो या बाहार का आतंकवादी. देश की सेना के साथ-साथ यह हम प्रजा जनों का भी कर्तव्य है कि अपने संस्कारों और मातृभूमि की रक्षा को आगे आयें.अपने धर्म की रक्षा को आगे आयें. धर्म का अर्थ केवल इश्वर के आराधना या किसी पूजा पद्धति से नहीं है बल्कि जब मैं धर्म की रक्षा की बात करता हूं तब मैं राष्ट्र के रक्षा की बात करता हूं, अपने संस्कृति और जीवन शैली के रक्षा की बात करता हूं  अतः इसकी रक्षा के लिए इस धर्म को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दें, केवल लड़ाईयों से रक्षा नहीं होती, पहरेदारी से भी होती है...

धर्मो रक्षति रक्षितः

1 टिप्पणी:

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...