शोक नहीं संताप नहीं
शांति का हो जाप नहीं
है संयम से समाधान नहीं...
आंखो में अंगार धधकने दो...
प्रतिशोध की ज्वाला अब भड़कने दो।
मरने की नहीं मारने की बात हो...
नये भारत में नयी शुरुआत हो...
मातृभूमि के शत्रुओं से सीधा दो-दो हाथ हो
नसों मे लहू नहीं दवानल दहकने दो...
प्रतिशोध की ज्वाला अब भड़कने दो।
वार नहीं हमने प्रथम किये...
बदले में हमें मातम मिले,
बैठो न अब आंखें नम लिये..
विनम्रता को कमजोरी मत समझने दो,
प्रतिशोध की ज्वाला अब भड़कने दो...
मांताओं के सुनी गोदों की पुकार
बहनों के कच्चे धागों का प्यार
सुनकर दुश्मन की ललकार
स्वयं को बिजली सा कड़कने दो....
प्रतिशोध की ज्वाला अब भड़कने दो
देश के जवानों जुट पड़ो
बज्र बनकर टूट पड़ो
दुश्मन पर ऐसे छूट पड़ो..
अन्तक को रण में गरजने दो....
प्रतिशोध की ज्वाला अब भड़कने दो...
(NOTE- उक्त पंक्तियों पर राजन कुमार झा का एकाधिकार है। बिना उनकी इजाजत के उद्धृत किये जाने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।)
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