गुरुवार, 28 सितंबर 2017

आज के युवाओं की समस्या सिर्फ उनकी नहीं पूरे समाज की है...

युवा कौन हैं? मेरी समझ से  आंखों में उम्मीद के सपने, नयी उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला युवा कहा जाता है। युवा शब्द ही मन में उड़ान और उमंग पैदा करता है।उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके परिवार का भविष्य तय किया जा सकता है। आज का एक सत्य यह भी है कि युवा बहुत मनमानी करते हैं और किसी की सुनते नहीं। दिशाहीनता की इस स्थिति में युवाओं की ऊर्जाओं का नकारात्मक दिशाओं की ओर मार्गान्तरण और भटकाव होता जा रहा है। लक्ष्यहीनता के माहौल ने युवाओं को इतना दिग्भ्रमित करके रख दिया है कि उन्हें सूझ ही नहीं पड़ रही कि करना क्या है, हो क्या रहा है, और आखिर उनका होगा क्या?सही क्या है गलत क्या है तक के निर्णय लेने में चूक हो रही है।  आज युवाओ मे धैर्य की कमी, आत्मकेन्द्रिता, नशा, लालच, हिंसा, कामुकता की अधिकता साफ देखी जा सकती है। यह एक चिंतनीय विषय है!  लेकिन अपवाद यहाँ भी मौजूद हैं। यहा भी एक तथ्य है।मगर इस समस्या की तह तक अगर हम जांए तो अलग अलग स्थितियों में कारण अलग अलग होते हैं इसके लिए सिर्फ युवाओं को दोष दे देना न्याय नहीं होगा। पहला अपराध माता, पिता व अभिभावक का है ! अपनी व्यस्तता की वजह से वे अपने बच्चों की तरफ ध्यान केन्द्रित नही कर पाते है ! कभी-कभी अभिभावक युवा के किसी मामले मे अति प्यार के कारण दखल देते है ! हर जायज या नाजायज मांग को पूरा कर देते है ! दूसरा सबसे बड़ा जिम्मेदार आज का समाज है समाज के लिए हर व्यक्ति अपना आर्थिक योगदान नाम के लिए तो देता है मगर समाज के व्यक्ति समाज के युवाओ के लिए नहीं के बराबर कैंपेन छेड़ती है। युवाओं के मोटीवेशन के लिए किसी तरह का आयोजन नहीं करती  जिससे उर्जा से भरपूर पीढ़ी भ्रमित न हो ! जरूरत है अभिभावक व समाज आज के युवाओ के साथ लेकर ऐसे आयोजन करे जिससे युवाओ मे अच्छे संस्कार का निर्माण हो! युवा संस्कारित होंगे तो परिवार का भविष्य उज्ज्वल होगा  समाज का भविष्य उज्ज्वल होगा देश का भविष्य उज्ज्वल होगा। 
देखिये समस्या हम सब के समक्ष तो है लेकिन इसके समाधान क्या हैं? उसपर भी बात होनी चाहिए। मैं यहाँ उन्हीं बातों को लिख रहा हूँ जो मैंने महसूस किया है हो सकता है गलत हों... कईं बार हमें ऐसा लगता है कि जब बच्चों की उम्र कम थी , तो हम उन्हें बताते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए और वे चुपचाप हमारी बात मान लेते थे। मगर अब हालात बदल गए हैं। जब कोई समस्या उठती है, तो हमें उनके साथ तर्क करना पड़ता है, उन्हें काफी समझाना पड़ता है और फिर मामले को उनके हाथ में छोड़ देना पड़ता है, ताकि वे अपनी सोचने-समझने की काबिलीयत का इस्तेमाल करके उस समस्या को सुलझा सकें। चंद शब्दों में कहें तो हमें उनके दिल तक पहुँचना होता है। कभी हम इसमें सफल हो जाते हैं और कभी असफल। हमें ये मानना होगा कि कभी-कभी बच्चों ( नौजवानों) के साथ हमारा झगड़ा इसलिए होता है, क्योंकि हम उनकी बात सुने बगैर और उनकी भावनाओं को समझे बगैर उन्हें झाड़ देते हैं। इसलिए हमने पाया है कि अपने बच्चों को कोई भी ताड़ना या सलाह देने से पहले, उन्हें अपने दिल की बात कहने का मौका देना बेहद ज़रूरी है। तब भी जब हमें उनका रवैया ठीक नहीं लगता।”
अब संक्षेप में दूसरी परिस्थिती की बात करता हूँ। दूसरी परिस्थीती में नौजवान उनकी जरुरतों के पूरी न हो पाने की स्थिती में अपने घरवालों के प्रति नकारात्मकता उत्पन्न करने लगते हैं। जहां तक प्रश्न जरुरतों का है तो जरुरी नहीं कि आवश्यकता को पूरा न करने की बात सिर्फ आपको प्रताड़ित करने के लिए कही गई। एक अक्षम व्यक्ति आवश्यकता से अधिक उसके  सस्ते  विकल्पों  की तलाश में लग जाता है। आवश्यकता पूरी न कर पाने की स्थिती में आवश्यकता उत्पन्न होने की कारणों पर पूरी शक्ति से  प्रहार करता है। ऐसे में व्यक्ति के अपनों का क्या कर्तव्य हो...?  इसका जवाब आपको तलाश करने की जरुरत है। यह समझने की आवश्यकता है कि आप अपनों के साथ खड़ें होंगे या अपनी जरुरतों के। 

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...