बुधवार, 24 अप्रैल 2019

भागलपुर में रिश्तों और इंसानियत को गड़ासे से काटा गया





पत्रकारिता की दुनियां में हमें हर रोज हर तरह की खबरों से दो चार होना पड़ता है. कई बार ऐसी ख़बरें आती हैं जो सिर्फ खबर नहीं होती. बल्कि हमारे समाज पर सवालिया निशान होती है. हम पहले पशु थे या अब होते जा रहे हैं. इस पोस्ट को अंत तक पढ़ने से पहले इन तस्वीरों को गौर से देख लीजिए. जो बिहार के भागलपुर से आयी हैं. आयी तो वीडियो है लेकिन मैं उसे अपलोड नहीं कर सकता. परंतु एक-एक दृश्य का विवरण आपके सामने जरुर करुंगा. जैसा की आप शुरुआत के दो चित्रो में देख पा रहे हैं. एक शख्स जिसके हाथ में धारदार हथियार है दूसरा लहूलुहान शख्स उस हथियार वाले का बड़ा भाई है. एक और शख्स जो लूंगी में है वह दोनों का पिता है. 
कहानी यह है कि मां-पिता के साथ मिलकर छोटा भाई अपने मझले भाई को गड़ासे से काटने की कोशिश कर रहा है. घटना बिहार के भागलपुर की है. गोराडीह थाने से महज 50 मीटर की दूरी पर दिनदहाड़े आशीष मंडल ने पिता शिवनारायण मंडल और मां हीरा देवी के साथ मिलकर अपने मझले भाई सुरेश मंडल को बेरहमी से काटकर मार डाला. सुरेश घर में अपना हिस्सा मांग रहा था घर बनाने के लिए. इसी विवाद में शाम को झगड़ा शुरू हो गया. सुरेश को गड़ासे से काटते समय जब उसकी पत्नी गीता बचाने गई तो उस पर भी परिवार वालों ने हमला कर दिया। (पीली साड़ी में) गांव वालों का कहना है कि ये लोग सुरेश को घर के अंदर ही मार डालना चाहते थे, लेकिन सुरेश लहूलुहान स्थिती में किसी तरह घर से बाहर निकलने में कामयाब रहा. गड़ासे के वार से बचने के लिए घर से सड़क पर निकल कर भागने लगा.लोगों से बचाने की गुहार लगाता रहा, लेकिन उसे आशीष ने पिता और मां की मदद से सड़क पर तड़पा-तड़पा कर काट डाला. जब आशीष गड़ासा चलाते-चलाते थक गया तो उसके पिता ने गड़ासा थामा और एक के बाद एक कई वार किये. सुरेश पर तब तक गड़ासा चलता रहा जब तक उसका शरीर शांत नहीं हो गया.
अब इस तस्वीर की बात करते हैं जिसमें कुछ लोग हाथ उठाये खड़े दिखाई दे रहे हैं. ये गांव वाले हैं जो घटना के दौरान मूकदर्शक बने रहे और वीडियो बनाते रहे. किसी ने सुरेश को बचाने की हिम्मत नहीं दिखाई. ग्रामीणों का कहना है कि यदि उसे बचाने के लिए कोई आगे बढ़ता था तो आशीष उसी की तरफ गड़ासा लेकर दौड़ जाता था. एक व्यक्ति को भीड़ काबू नहीं कर सकी. क्या हो जाता एक आध लोगों को चोटे आती लेकिन किसी की जान तो बच जाती... लेकिन गांव के किसी भी व्यक्ति ने उसे बचाने की हिम्मत नहीं की.हाथ उठाकर खड़े इन गांव वालों ने यह भी बताया कि पूरे हत्याकांड का मास्टरमाइंड मृतक सुरेश का बड़ा भाई हर्षवर्धन है. उसी ने अपने पिता और छोटे भाई को भड़का कर मझले भाई सुरेश की हत्या करवाई है.
अब बात पुलिस की, घटना के बाद मौके पर जुटे ग्रामीणों का कहना था कि हत्या के समय उन लोगों ने थाने को सूचना दी. लेकिन सूचना देने गए व्यक्ति को थाने में मौजूद किसी हाफ पैंट वाले अफसर ने डांट कर भगा दिया. यदि पुलिस उस समय वहां पहुंच जाती तो सुरेश की जान बच सकती थी. जब सुरेश का शरीर शांत पड़ गया. तब ग्रामीणों ने किसी तरह आशीष को पकड़ कर उसके हाथ से हथियार छिनकर फेंक दिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया.जो सुरेश के जिंदा रहते भी किया जा सकता था. इस अमानवीय घटना ने पुलिस सुरक्षा की भी पोल खोल कर रख दी है. हालांकि बाद में शिवनारायण उसकी पत्नी हीरा और बेटे आशीष को गिरफ्तार कर लिया गया और गांव वाले गुनहगारों के लिए फांसी मांग रहे हैं. हाथ उठाकर. यही हाथ अगर सुरेश को बचाने के लिए आगे आये होते तो शायद सुरेश की जान बच जाती. साथ ही सवाल यह भी कि अगर जन्म देने वाले मां बाप ही खून के प्यासे हो जायें तो फिर जान भला कब तक सलामत रहेगी?

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...