गुरुवार, 10 जनवरी 2019

आलोक वर्मा को क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए था?

                 
सीबीआई डायरेक्टर को पद से हटाये जाने के बाद विपक्ष के साथ-साथ कुछ और लोग हैं जो फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने आंख बंद कर के कसम खायी है कि चाहे फैसला जो हो हमें एक व्यक्ति और एक पार्टी का विरोध करना है. खैर ये उनकी अपनी निजी सोच है. मैं यहां अपनी और आपकी जानकारी के लिए यह कहने आया था कि सीवीसी की रिपोर्ट खाली नहीं है जैसा मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने विरोध-पत्र में लिखा है. सच तो यह है कि सीबीआई के डायरेक्टर सीवीसी की जांच में सहयोग करने से बचते रहे हैं और यही कारण इस बात के लिए काफी है कि उन्हें अपने पद पर नहीं बने रहने दिया जाना चाहिए था.
आलोक वर्मा पर मोइन कुरैशी केस में सतीश बाबू साना से 2 करोड़ रुपये घूस लेने का आरोप था. उनपर दूसरा आरोप आईआरसीटीसी केस में लालू प्रसाद यादव के परिसर में तलाशी नहीं लेने के निर्देश दिये जाने का था. इसके अलावा और भी कई आरोप थे. निदेशक को इन आरोपों के संबंध में 14 सितंबर 2018 को कमीशन के सामने जरूरी फाइल और दस्तावेज पेश करने को 3 नोटिस जारी किए गए थे.सीबीआई की ओर से इस मामले में और समय देने का अनुरोध किया गया, जिससे सुनवाई को 18 सितंबर 2018 तक के लिए टाल दिया गया. 
अब देखिये सीबीआई ने 18 सितंबर को राकेश अस्थाना के संबंध में कमीशन यानी सीवीसी को चिट्ठी लिखी. अपने नोटिस के बारे में जवाब नहीं दिया. चिट्ठी में राकेश आस्थाना पर लगाये गए आरोपों का जिक्र था कहा गया कि ये आरोप सच प्रतीत होते हैं. उनके खिलाफ आधे दर्जन से ज्यादा केस में आपराधिक कदाचार के सबूत पाए गए थे. अधिकारी को सीबीआई के पास अपने खिलाफ सबूत होने की भी जानकारी थी. इसलिए राकेश आस्थाना की शिकायत को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. सीबीआई ने ये भी कहा था कि वह कमीशन को जरूरी फाइल उपलब्ध कराने को भी तैयार हैं. लेकिन अपने पर लगाये आरोपों पर कुछ नहीं कहा. खत में सीबीआई ने शिकायतकर्ता की पहचान भी पूछी थी.
सीबीआई की 18 सितंबर की चिट्ठी के संदर्भ में कमीशन ने शिकायतकर्ता की पहचान बताने से इनकार कर दिया था. इसके बाद कमीशन ने सीबीआई डायरेक्टर को अपने तीन पुराने नोटिस को दोहराया और सभी दस्तावेज और फाइल 20 सितंबर तक पेश करने को कहा. इस बीच यही सिलसिला अक्टूबर तक चलता रहा. सीवीसी ने जो रिपोर्ट तैयार की है जिसपर खड़गे जी ने सवाल उठाया है उसमें कहा गया कि कैबिनेट सचिव ने 24 अगस्त 2018 को शिकायत दी थी, जिसके बाद उसने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सीबीआई से मामले में रिकॉर्ड पेश करने को कहा, लेकिन 40 दिन गुजर गए और रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया. जब सीबीआई ने रिकॉर्ड पेश नहीं किया और सहयोग नहीं किया, जिसके चलते सीवीसी इन गंभीर आरोपों के मामलों अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पा रही है. माना की ये सिर्फ आरोप थे लेकिन अगर आरोप निराधार थे तो सीबीआई डायरेक्टर टाल मटोल क्यों कर रहे थे, उन्हें दस्तावेज के साथ सामने आजाना चाहिए था.
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि सीबीआई के अंदर झगड़ा काफी बढ़ गया है, जिससे जांच एजेंसी की गरिमा को भी नुकसान हुआ है. सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दूसरे शीर्ष अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने की खबरें मीडिया में भी खूब चलीं, जिससे भी जांच एजेंसी के अंदर वर्किंग एनवायरनमेंट (Working environment) खराब हुआ. इसका असर सीबीआई के दूसरे अधिकारियों पर पड़ा. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (DSPE Act) का सेक्शन- 4 (1) सीवीसी को सीबीआई की निगरानी करने का अधिकार देता है. इसके अलावा CVC एक्ट का सेक्शन 8 (1) (a) और (b) भी सीवीसी को सीबीआई के कार्यों की superintendence करने का अधिकार देती है. इसको अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी superintendence की व्याख्या की है. भ्रष्टाचार कानून के तहत आलोक वर्मा के खिलाफ केस दर्ज हैं और कई मामलों की जांच किया जाना बाकी है. ऐसे में उनको डायरेक्टर पद की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.सीवीसी ने कहा कि सीबीआई में आपातकाल जैसे हालात पैदा होने के कारण यह रिपोर्ट दी गई है. अब आप ही तय कीजिए कि आलोक वर्मा को क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए था?

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...