अब धैर्य भी होने लगा अधीर है.
होता प्रतीत बंधा हुआ समीर है.
है धनुष तैयार, तरकश में नहीं तीर है.
बिना रण के ही थक चुका रणवीर है.
रण का कौशल दिखा रहे जो पहले से हैं लड़ रहे,
शौर्य के प्रदर्शन को कई शूर प्रतीक्षा में खड़े...
स्वपनों को साकार करने वीर जब हठ पर अड़े
जीत ली सारी धरा या लड़खड़ा कर गिर पड़ें..
सूर्य की किरणें चमक क्यों खो रहीं?
कर्म की नहीं पूजा पशंसा की हो रही..
परीक्षा अब धैर्य की कठिन होती जा रही,
कर्ण की कहानी हर क्षण दोहराई जा रही.
रंग-भूमि पर सदा से ही अधिपत्य उन्हीं का होता हैं
बड़े घरों में पलकर जो महंगे संस्थान में पढ़ता है.
कितने ही एकलब्य अंगुठे दान में दिये जा रहे...
तभी तो आज के ये अर्जुन श्रेष्ठ कहला रहे.
दुनियां में कैसा कानून ये चलता है?
सुखी ही सुख पाता, दुःखी और अधिक जलता है.
हरी-भरी है धरा जहां की मेघ वहीं गरजता है..
मरु भूमि का रेत मगर प्यासा का प्यासा रहता है.
किसी लक्ष्य का स्वप्न लिये वीर जो साहस करता है
उस स्वप्न को पाने में अपना सर्वस्व देना पड़ता है
जो वीर नही विचलित होते विपदाओं से घबरा कर,
प्रकाश उनका फैल ही जाता जैसे तमी के बाद दिवाकर.
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