शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

करना है अब विश्व विजय

सूर्य कब तक छिपा रहेगा, बादलों की ओट में...
देख चुके है शक्ति कितनी विपत्तियों की चोट में।
देख कर मेरी प्रभा को चकित सब रह जायेंगे..
निज घरों में तम मिटाने, दीप्ति मुझसे पायेंगे।

कौड़ियों को कौन पूछे अब कनक खनकायेंगे,
मां के चरणों में मही क्या व्योम तक झुकायेंगे।
दान को विचर रहे जो दानवीर कहलायेंगे,
तीनों लोकों का ऐश्वर्य गेह में सजायेंगे।

 पृथक हुआ माणिक जो पत्थरों के बीच से,
बज्र बनकर छूटेगा जैसे हड्डियाँ दधीचि से।
'वाह' की गुंजन चहु दिशाओं में छा जायेगी,
नाम मेरा इतिहास में अमृत फिर पा जायेगी।

संकटों की सेना को कुछ यूँ धूल चटाना है,
शौर्य की किरणों से अब इस रात्रि को मीटाना है।
ठोकरों से पथ के अपने जग को मैने जाना है,
प्राप्त कर  विश्राम होगा जो संकल्प मैने ठाना है।

भानु में न अग्नि हो न जल हो श्याम घन में,
सौंदर्य की न लालसा अब माधुर्य न हो जीवन में,
हो केवल निश्चय दृढ़, हो केवल लक्ष्य विजय,
संपूर्ण धरा का स्वामी बनकर करना है अब विश्व विजय।।।।।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...