मीडिया अपना औचित्य खो रही है...
पत्रकारिता समाज के कुरीतियों को दूर करने का ऐसा माध्यम है जो सहज हीं लोगों से संवाद करता है।उसका प्रभाव भी दूरगामी होता है। लेकिन आज पत्रकारिता का जो दृष्य है वह आश्चर्य और चिंताजनक भी है।
TRP की अंधी दौड़ में तमाम न्यूज चैनल वाले जाने अनजाने युवाओं में एक विकार उत्पन्न कर रहे हैं, मेरा इशारा आत्महत्यायों पर दिखाई जाने वाली खबरों की तरफ है।
हाल हीं मे कई चैनलों ने ग्रेटर नोएडा में रितु नाम के लड़की के आत्म-हत्या वाली खबर को दिखाकर गदगद हो खुद की पीठ थपथपा ली। एक अन्य घटना की बात करें तो रोहित वेमुला के दलित होने का फायदा जितना चैनल वालों ने उठाया उतना तो वो स्वयं नहीं उठा पाये होंगे। दोनो हीं घटनाओं का आपस मे कोई संबंध नहीं है परंतु एक बात गौर करने वाली है कि दोनों हीं युवा थे।उनके साथ भले ही अन्याय हुआ हो तो क्या आत्महत्या के आलावा उनके पास और विकल्प नही थे। हद तो तब हो गई जब हमारे देश की मीडिया ने उनके आत्महत्याओं का प्रचार करना शुरु कर दिया। लेकिन एक बार भी उन्होंने इस मानसिक विकृति पर सवाल नहीं उठाया।
इससे किस प्रकार का संदेस जायेगा युवाओं मे ? आत्महत्या की चाहे जो वजह रही हो उसे किसी भी कीमत पर सही नही ठहराया जा सकता। हद तो तब हो जाती है जब आत्महत्या को जबरन हत्या बनाने की कोशिश की जाती है। नंबर वन बनने की होड़ मे मीडिया अपना औचित्य खो रही है।
पत्रकारिता समाज के कुरीतियों को दूर करने का ऐसा माध्यम है जो सहज हीं लोगों से संवाद करता है।उसका प्रभाव भी दूरगामी होता है। लेकिन आज पत्रकारिता का जो दृष्य है वह आश्चर्य और चिंताजनक भी है।
TRP की अंधी दौड़ में तमाम न्यूज चैनल वाले जाने अनजाने युवाओं में एक विकार उत्पन्न कर रहे हैं, मेरा इशारा आत्महत्यायों पर दिखाई जाने वाली खबरों की तरफ है।
हाल हीं मे कई चैनलों ने ग्रेटर नोएडा में रितु नाम के लड़की के आत्म-हत्या वाली खबर को दिखाकर गदगद हो खुद की पीठ थपथपा ली। एक अन्य घटना की बात करें तो रोहित वेमुला के दलित होने का फायदा जितना चैनल वालों ने उठाया उतना तो वो स्वयं नहीं उठा पाये होंगे। दोनो हीं घटनाओं का आपस मे कोई संबंध नहीं है परंतु एक बात गौर करने वाली है कि दोनों हीं युवा थे।उनके साथ भले ही अन्याय हुआ हो तो क्या आत्महत्या के आलावा उनके पास और विकल्प नही थे। हद तो तब हो गई जब हमारे देश की मीडिया ने उनके आत्महत्याओं का प्रचार करना शुरु कर दिया। लेकिन एक बार भी उन्होंने इस मानसिक विकृति पर सवाल नहीं उठाया।
इससे किस प्रकार का संदेस जायेगा युवाओं मे ? आत्महत्या की चाहे जो वजह रही हो उसे किसी भी कीमत पर सही नही ठहराया जा सकता। हद तो तब हो जाती है जब आत्महत्या को जबरन हत्या बनाने की कोशिश की जाती है। नंबर वन बनने की होड़ मे मीडिया अपना औचित्य खो रही है।
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