सोमवार, 23 अप्रैल 2018

शहरीकरण नहीं ग्रामीकरण से बनेगा भारत विश्व गुरु


अगर मैं अपने गांव से समाचार पढ़ना या लिखना शुरु करुं और उसे संपूर्ण भारत देखने लगे  तो दिल्ली, नोएडा, मुंबई और हैदराबाद का क्या होगा? क्या ऐसा संभव है? थोड़ी गहराई से देखते हैं...
बिहार के जिस जिले से मैं आता हूँ वहां न तो एक भी सराकरी बस स्टैंड है न ही प्राइवेट, फिर रेलवे स्टेशन की तो बात ही मत कीजिए और हवाई अड्डे के बारे में  सपनों में भी सोचना गुनाह है. मैं शान से इसे देश का सबसे पिछड़ा जिला बताता हूँ। यहां न तो ढंग का एक बाजार है न ही एक होटेल. एक पतली सी बनारस के गलियों की तरह रोड है जो सितामढ़ी को जाती है। अब बिहारी पाठक समझ गए होंगे शिवहर की बात हो रही है। देश के सबसे पिछड़े जिले का सबसे पिछड़ा गांव धनहारा(धर्मपुर) है। यह मेरा गांव है। यहां की एक बड़ी संख्या ने आज तक विमान नहीं देखा है यहां के 40 प्रतिशत लोग जिनकी उम्र 50 साल से अधिक है उन्होंने कभी रेलवे का सफर नहीं किया है। गांव की जनसंख्या  10 हजार के आस पास है। तीन टोलों में गांव बंटा हुआ है ज्यादातर लोग पिछड़ी जाति से हैं और निर्धन हैं। गांव में सवर्ण कम हैं जो हैं वो निम्न मध्यम वर्ग के हैं। हमरा परिवार अतिनिम्न वर्गीय था दो दशकों से हम निम्न वर्गीय कहलाते हैं और मध्यमवर्गीय होने की कोशिश में मैं खुद लगा हूँ, अपने भाईयों के साथ.
जैसा कि मैंने पूर्व में कहा कि हमारे गांव के अधिकतर बुजुर्ग बाहर नहीं निकले। यह वो दौर था जब भारत को गांवों का देश कहा जाता था, कहा तो अब भी जाता है लेकिन उसके साथ यह नहीं कहा जाता कि अब गांव खाली हो चुके हैं. गांवो के ज्यादातर लोग गांव छोड़ कर शहरों में जा बसे हैं. गांव में कुछ महिलायें और बुजुर्ग ही बचे हैं। गांव में संयुक्त परिवार की प्रथा कही -कही अब भी जिंदा है, उन सौभाग्यशाली परिवारों में एक मेरा भी परिवार शामिल है। परिवार में कुल 30 सदस्य हैं उनमें से गांव में केवल 6 लोग हैं.
इसी से अंदाजा लगा लिजिए. पूरे गांव का यही हाल है, पूरे बिहार का यही हाल है. बड़े शहरों की तरफ जाने आने वाली गाड़ियां हर मौसम में यू हीं खचा खच भरी हुई नहीं मिलती. वजह है कि बिहार की बहुत बड़ी संख्या बिहार में रह ही नहीं रही है. कारण सबको पता है सुविधाओं की कमी.  लेकिन अगर गांव में सुविधाओं की कमी है तो शहरों में लोग कौन से राजा महाराजा की जिंदगी जी रहे हैं। कुछ लोगों को छोड़ दें तो जो मजदूर वर्ग के बिहारी है वो शहरों में जानवरों से भी खराब जिंदगी जीने को मजबूर हैं। क्या सरकार शहरीकरण को रोक कर गांवों के विकास के लिए योजनायें बना सकती है. क्या सरकार इतनी बड़ी मात्रा में हो चुके और हो रहे पलायन को रोकने के लिए कदम उठा सकती है. सरकार इन स्थानों को चिन्हित कर के क्यों नहीं कदम बढ़ाती है. बजट में योजनाओं के लिए कई कई हजार करोड़ आवंटन की बात ऐसे होती है, जैसे ठेकदार मजदूरों की दिन भर की मजदूरी देते हुए सौ सौ के नोट बांटता है. लेकिन वो कई कई हजार करोड़ की राशि जिनकी मैं कल्पना तक नहीं कर पा रहा वो उन्हें ही डेवलॉप करने में खर्च हो रहे हैं जो पहले से ही पटरी पर हैं. शिवहर को जिला बने 24-25 साल हो गए एक बस स्टैंड नहीं बना?  हजार करोड़-हजार करोड़  के बजट हर साल पास होते हैं. अगर सुविधायें और आमदनी घर बैठे होगी तो लोग दूसरे राज्यों में नरक की जिंदगी जीने क्यों जायेंगे. ढ़ंग का स्कूल नहीं है, गुणवत्ता युक्त शिक्षा नहीं है, कॉलेज और यूनिवर्सिटी तो हैं रोजगार नहीं है. बिजली आ जाये तो लोग उत्सव मनाते हैं. बिजली ही नहीं है तो कारखाने कहां से आयेंगे. उद्योग कैसे लगेंगे? प्रतिभा नहीं है ऐसा तो कह नहीं सकते आप. नीचे से लेकर उपर की कुर्सी तक झांकिये हर जगह बिहारी दिखेंगे. शहरों के लिए कर रहे हैं, गांवों के लिए भी कर सकते हैं. व्यवस्थायें तो दीजिए. सरकार के तरफ से अक्सर कहा जाता है जनभागीदारी से देश बढ़ेगा, नागरिकों को खुद आगे आना होगा. हम आगे आने को तो तैयार हैं लेकिन मेरे पास हजार करोड़ नहीं है न वो तो हर साल आप ही बांटते हैं. पता न कहां चला जाता है सब. संसद में कानून आप बनाते हैं बिल पास आप करते हैं योजनायें आप बनाते हैं  और हम हिसाब मांगे गुहार लगायें तो कहेंगे जनभागीदारी..... सुनकर लगता है यार हमी में तो कमी नहीं है... लेकिन फिर ख्याल आ जाता है कि न न हम ठीक हैं ये बुड़बक बनाकर चला गया. क्योंकि हम ही तो हैं जो शहरीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं. कंपनी के नौकर से लेकर मालिक तक बने बैठे हैं शहरों में.... गांव के राजा भी हो ही सकते हैं... लेकिन पहले आप अपना काम तो कीजिए उसके बाद जन भागीदारी न. उसके बाद अपने गांव में बने न्यूज स्टूडियो से खबर लिखेंगे और पढ़ेंगे न पूरे देश के लिए....


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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...