सोमवार, 28 नवंबर 2016

नोट बंदी पर गतिरोध-विरोध-आक्रोश

8 नवम्बर को जब देश के प्रधानमंत्री ने नोट बंदी की घोषणा की। लगभग एक सुर में सत्ता पक्ष विपक्ष और आम लोगों ने इसका स्वागत किया। लेकिन धीरे -धीरे देश कतार में लग गया और कतार में लगे लोग परेशान भी होने लगे। रुपयों की कमी लगभग हर वर्ग को हो गयी, बावजूद इसके बड़ी संख्या में लोग सरकार का समर्थन करते रहे। दबे गले से कांग्रेस भी सरकार का समर्थन कर रही थी, लेकिन ममता बनर्जी और मायावती के खुलकर विरोध करने पर जैसे कांग्रेस की निंद्रा भंग हुई हो धीरे-धीरे उसने भी नाक को घुमा कर पकड़ना शुरू किया। लोगों को हो रही परेशानियों को तूल दे कर सरकार पर हमले शुरू हुए। सरकार के प्रवक्ता और नेता खुद को सही साबित करने में लगे रहे इसमें उन्हें देश की अच्छी खासी जनता का साथ भी मिला। इन सब के बावजूद होने वाली परेशानियों को नकारा भी नहीं जा सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या परेशानियां इतनी हैं कि संसद में हंगामा कर काम काज ठप कर दिया जाय? नोट बंदी के समय को सबसे अधिक टारगेट किया गया मेरी समझ से जब भी निर्णय लिया जाता तब भी इस बात पर सवाल उठाया जाता की नोट बंदी का समय ठीक नहीं था। सवाल तो सरकार के अधूरे इंतेजाम पर भी उठने चाहिए क्योंकि एक सच यह भी है कि लोगों को तकलीफ तो हुई है। लेकिन इसके लिए यह तर्क की सरकार को कुछ दिन का समय देना चाहिए था मुझे जायज नहीं लगता यह मांग दरअसल मुलायम सिंह जी की थी। ज़ाहिर है यूपी के चुनाव नजदीक है उनकी और मायावती जी की पीड़ा समझ में आती है। आपको भी आ ही रही होगी।  विरोध होते होते बात यहाँ तक पहुँची की भारत बंद बुलाया गया, इस बारे में अधिक जानकारी के लिए जब मैंने इन्टरनेट और गूगल की सहायता ली, तो सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर पता चला अधिकतर लोग बंदी की नहीं बल्कि 2 घंटे अधिक काम करने और दुकाने खुली रखने की बात कर रहे थे। भारत बंद की सकल बदल कर अब विरोध-प्रदर्शन हो गयी। गूगल फैसिलिटी और सोशल मीडिया के रुझानो ने जरूर कांग्रेस और बाकि के विपक्षी दलों को प्रभावित किया होगा।
बिहार में बंद के नाम पर सबसे पहले रेल परिचालन रोका जाता है। भाकपा माले ने रेल परिचालन रोक कर अपना विरोध जताया, मुझे समझ नहीं आया जिनलोगों की परेशानियों के नाम पर ये लोग प्रदर्शन कर रहे थे उन्होंने रेल रोक कर उन्ही यात्रियों को क्यों परेशान किया जिनके लिए उनकी सरकार से लड़ाई है। ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया वो नोट बंदी नहीं बल्कि उसके लागु करने के तरीके को लेकर अपना अलग विरोध कर रही हैं जैसे उन्होंने खुद को सबसे अलग कर लिया हो। इस विरोध में विपक्ष के भीतर भी विरोध देखा जा सकता था। नितीश कुमार ने खुद को इस विरोध से अलग कर लिया। लालू यादव लगातार सोनिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के संपर्क में थे। बावजूद इसके कांग्रेस और अलग- अलग विपक्षी दल अपने अपने तरीके से विरोध जाता रहे थे। साफ़ ज़ाहिर है विपक्ष में विरोध कम आक्रोश अधिक है। अब यह आक्रोश किस बात को लेकर है यह आपको खुद समझना है। मैं भी समझ रहा हूँ, लेकिन मैं एक पत्रकार हूँ नौकरी का सवाल है बेहतर होगा आप खुद ही समझना शुरू कर दें।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...