देश आज कतार में है। कैश की कमी है। असर हर क्षेत्र और हर वर्ग पर पड़ा है जाहिर है मुझपर भी पड़ा है, लेकिन उतना भी नहीं। मैं भी 'लेकिन' इस्तेमाल कर रहा हूं आज कल लेकिन बहुत चल रहा है, कुछ समय पहले तक तो 'फॉग' चल रहा था। मैं हमेशा से हीं कैश ट्रांसक्शन से कतराता हूं। आप ये बिलकुल न समझें कि मुझे नोट बंदी के बारे में पता था। दरअसल कैश पास में रखना मुझे असहज महसूस करवाता था, इसका कारण है कि कईं बार चोरों ने मेरी पॉकेट मारी इसके अलावा कईं बार मैने भारी भरकम नोट गंवा दिये कहां गये वो आजतक रहस्य हैं। मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन बैंकिंग और डेबिट कार्ड ने मुझे बहुत राहत दी। क्रेडिट कार्ड अभी तक बना नहीं है। फिर भी कैश की जरुरत तो कमोबेश पड़ती हीं है। 8 नवंबर की रात प्रधानमंत्री ने नोट बंदी की घोषणा की मेरे पास 200 रुपये 2 सौ-सौ के नोट के रुप में थे। ऑफिस से घर आते हुए रास्ते में तीन एटीएम मशीनें मुझे हाई-हेलो करती रहीं, मैंने उन्हें खूबसूरत लड़कियों की तरह भाव नहीं दिया। मैं सोंच रहा था 2-4 दिनों में सब नॉर्मल हो जायेगा। हड़बड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है। हफ्ते भर मैने अपना काम उन 200 रुपयों में चला लिया। सारे पैसों को खर्च करने के बाद एटीएम की तरफ भागे तो पता चला कोई 4 दिन से बंद है किसी में कैश नहीं है तो किसी का सर्वर गायब है। तीनोंं एटीम मशीनें मुंह चिढ़ा रहीं थीं, उस दिन तो बड़ा भाव खा रहा था। मैं लौटा, पानी पिया पीजी का खाना खाया और लेट गया। अगले दिन ऑफिस जाने तक के किराये नहीं थे। मेरे न पहुंचने पर ऑफिस से फोन आया "कहां हो सर एमपी और छत्तीसगढ़ से ब्रेकिंग पड़ी हैं कोई लिखने वाला नहीं है।" मैने उस रोज अपनी मजबूरी बता कर अवकाश ले ली। दोपहर को भूखे पेट लोगों को अनफ्रेंड किये जा रहा था तभी शोर मचा, एटीएम में पैसे डाले जा रहे थे। फिर क्या था, सब छोड़-छाड़ कर मैं भी भागा करीब 150 लोग मेरे आगे लग चुके थे और देखते हीं देखते मेरे पीछे इससे भी अधिक। 11 बजे से कतार में अपने नंबर का इंतेजार करते-करते 2 बज गये, भूख मान नहीं रही और नंबर आ नहीं रहा। कतार में 2 घंटे निवेश करने के बाद बीच से निकल नहीं सकते। खिसकते खिसकते अब एटीएम के दरवाजे से 20 फीट की दूरी तक पहुंच चुके थे। 3 बज चुके थे और मेरी जठराग्नि (भूख) चरम पर थी। इस बीच सबसे अच्छी बात यह हुई कि कॉन्टेक्ट लिस्ट से छांट कर उन सब लोगों को फोन कर लिया जिनको हमेशा से शिकायत होती है कि मैं उनसे बात नहीं करता। अपने जेब को टटोलते हुए विचार कर हीं रहा था कि कितने रुपये निकालूं तब तक आगे से घोषणा हो गई एटीएम में कैश समाप्त हो गया...अब रात को पीजी से मिलने वाले भोजन पर उम्मीद थी।
अगली सुबह फिर से शोर मचा एटीएम में पैसे डले हैं, लाइन भी अपेक्षाकृत छोटी थी। लेकिन ऑफिस जाना भी जरुरी था आज.. वर्ना नौकरी खतरे में पड़ जाती। एक मित्र जिसे सारा हाल पता है ने 30 रुपये दिये और कहा ऑफिस जाईये बाद की देखते हैं। ऑफिस तक का किराया 10 रुपया है। भाड़े के अतिरिक्त मेरे पास 10 और रुपये थे जिसके 2 चॉकलेट क्रीम बिस्कीट ले कर ऑफिस चला गया।
2 दिन एटीएम बंद। तीसरे दिन रात 11 बजे पैसे डलने के बाद मशीन चालु हुआ और पास होने की वजह से मुझे जानकारी जल्दी हो गई। ये दो दिन कैसे गुजरे??? रहने दिजिए फिर कभी.. फिलहाल एक और कतार का मजा लिजिए। यह कतार काफी जोशिला था ज्यादातर नौजवान थे। लड़के और लड़कियों की अलग-अलग लाईन। लाईन बढ़ती जा रही है मैं खुशकिस्मत हूं पहले आ कर लग गया। फिर भी कतार में 1 घंटे 5 मिनट का इंतेजार करना पड़ा। मोदी-मोदी के नारों के बीच आखिर मेरा नंबर आ हीं गया...उत्सुकता के साथ कार्ड घीसते हीं डिसप्ले हुआ we can not read your card please insert properly. मेरे धीरज की परीक्षा चल रही थी। अगली बार अपनी टी-शर्ट में साफ कर कार्ड को दूबारा घीसा इस बार they read my card. मशीन के पैसे देने के पूर्व जो ध्वनि निकलती है संभवतः पैसे गिनने की वह ध्वनि मोहम्मद रफी की आवाज से भी सुरीली लग रही थी। मन प्रसन्न हो गया था, क्योंकि मेरा नंबर आ गया था। संभवतः काफी दिनों के बाद आधी रात को प्रसन्नता के साथ जागने का एक कारण मिला था।
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