लोगों ने इश्क को सीमाओं में बांध लिया है। जबकि इश्क में सीमा जैसा कुछ होता नहीं है। दो लोग होते हैं। उनके बीच बाते होती हैं, कभी-कभी बातें नहीं भी होती हैं। लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं। फिर एक चुप्पी होती है। इश्क में होते हुए भी बात न करने का अपना अलग हीं एहसास होता है। वो गले से छाती तक उतरता हुआ एहसास बात न करते हुए भी हमेशा यकीन दिला रहा होता है कि हम इश्क में हैं। मतलब कॉमर्सियल भाषा में कहें तो न बात करना भी इश्क की एक ईएमआई होती है जिसे महीने में एक बार भरते रहना चाहिए ताकी इश्क की कीमत का एहसास होता रहे।
आज का इश्क कैदी हो गया है, शर्तों का, पाबंदियों का और कहीं-कहीं रिवाजों का भी। लेकिन इन पाबंदियों के भीतर भी इश्क आजाद है। कईं मामलों में ये आजादी इश्क को कैद से रिहा करा लेते हैं। ज्यादातर इश्क की ये आजादी कैद में हीं दम तोड़ देती है।
इश्क के अहसास को लोग जाहिर नहीं कर सकते लेकिन जी तो सकते हैं। इश्क़ हमें थोड़ा कमज़ोर थोड़ा संकोची बनाता है । एक बेहतर इंसान में ये कमज़ोरियाँ न हों तो वो शैतान बन जाता है । चाहना सिर्फ आई लव यू बोलना नहीं है । चाहना किसी को जानना है और किसी के लिए ख़ुद को जानना है , जरुरत पड़े तो खुद को बदलना भी है। हमारी युवा वर्ग से एक गुजारिश है कि अपना समय केवल किसी माशूक़ को ढूँढने में ही मत गँवा दीजियेगा, खुद की भी तलाश कीजिए। एक गयी दुसरी आयी की प्रथा हर रोज सच्चे प्यार की हत्या कर रही है। खुद को उनके साथ जीने को तैयार कीजिए और तैयारी ऐसी हो कि उनका न होना भी हमेशा आपको उनके होने का एहसास कराता रहे। प्यार का मतलब हमेशा साथ होना नहीं होता। प्यार तो वो है जो उनके बिना भी जीने की कला सीखा जाय। आप में उन कल्पनाओं को भी साकार करने की क्षमता होनी चाहिए जिन्हें आप किसी के लिए साकार करना चाहते थे। किसी के चले जाने से उन सपनों का खून नहीं होना चाहिए जो कभी दोनों ने साथ देखे थे। अपने कैद में आजाद इश्क से इंसाफ आपको खुद करना है, कोई दुसरा नहीं आयेगा।
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