पूर्व सैनिक रामकिशन जी ने वन रैंक वन पेंसन की मांग को लेकर आत्म हत्या कर ली। आत्म हत्या तब की गई जब सरकार ने इस मांग को स्वीकार कर लिया और इसे लागु करना भी शुरु कर दिया। सरकार ने करीब 90% राशि भी आवंटित कर दी और शेष के लिए भी प्रतिबद्ध है ऐसा हम नहीं सेना के पूर्व कर्नल करन खरब जी ने एक टीवी चैनल पर कहा। हम सभी जानते हैं कि इस व्यवस्था को लागु करने में कठिनाईयां हैं और समय लगता है, सवाल ये है कि जो सैनिक 25-30 सालों तक इसका इंतेजार करते हैं लड़ाई लड़ते हैं इस बीच सरकारें बदलती हैं 2014 में एक नई सरकार आकर इन्हें भरोसा दिलाती है कि वन रैंक वन पेंसन योजना लागु होगी, एक साल के भीतर-भीतर सरकार कही बातों पर अमल करती दिखती भी है ऐसे में कोई सैनिक आत्महत्या कर लेता है। तब जब योजना लागु हो रही है, मेरे समझ के बाहर है। इन 25-30 सालों से धीरज का परिचय देते हुए 1 हीं साल में अधिर हो जाना कैसी बहादुरी है। जबकि आपकी मांग मानी जा रही है, इसपर बहस तेज है बहुत से लोगों को इसका लाभ भी मिलना शुरु हो गया है।
चीजों को समझने के वजाय कुछ नेता जिन्हें सरकार को गरियाने का मौका मिल गया दौड़ते हुए चल दिये सैनिक के परिवार से मिलने इसपर भी राजनीति?
मैंने करीब एक साल पहले अपने कॉलेज के दिनों में हीं दिल्ली के जंतर-मंतर से पूर्व सैनिकों की मांग को लेकर रिपोर्टिंग की थी और उनसे बात कर के उनकी समस्यायों को जानने की कोशिश भी की थी। तब पूर्व सैनिकों से बात करते हुए जरा भी एहसास नहीं हुआ कि ये सैनिक जो लाकों नौजवानों के प्रेरणा श्रोत हैं आत्म-हत्या जैसी घटिया हरकत भी कर सकते हैं। आत्म हत्या चाहे जिन परिस्थितियों में हो वह कायरता से अधिक कुछ नहीं है। आत्म हत्या करने वाले सैनिकों को शहीद कहना, शहीद सैनिकों का अपमान करना होगा।

मैंने करीब एक साल पहले अपने कॉलेज के दिनों में हीं दिल्ली के जंतर-मंतर से पूर्व सैनिकों की मांग को लेकर रिपोर्टिंग की थी और उनसे बात कर के उनकी समस्यायों को जानने की कोशिश भी की थी। तब पूर्व सैनिकों से बात करते हुए जरा भी एहसास नहीं हुआ कि ये सैनिक जो लाकों नौजवानों के प्रेरणा श्रोत हैं आत्म-हत्या जैसी घटिया हरकत भी कर सकते हैं। आत्म हत्या चाहे जिन परिस्थितियों में हो वह कायरता से अधिक कुछ नहीं है। आत्म हत्या करने वाले सैनिकों को शहीद कहना, शहीद सैनिकों का अपमान करना होगा।
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