राजीव धवन अपने प्रसिद्ध पिता से भी अधिक ख्याति को प्राप्त कर चुके हैं. भारत में अब बच्चा बच्चा उन्हें पहचानने लगा है. खासकर राम मंदिर पर सुनवाई के आखिरी दिन यानी 16 अक्टूबर को राजीव धवन ने कोर्ट में हिंदू पक्ष के वकील के द्वारा प्रस्तुत किये गए नक्शे को फाड़ दिया... फिर क्या था पहले से खुन्नस खाये तथाकथित रामभक्तों की भक्ति ऐसी जगी कि कोई उन्हें खींचकर मारने की बात कर रहा है.. कोई उन्हें लटकाने की बात कर रहा है तो कोई उन्हें जान से मारने की धमकी देता फिर रहा है. सोशल मीडिया पर तो हालत और भी खराब है लोगों ने उनका नाम मजहब तक बदल दिया है अफवाह फैलाई जा रही है कि वे दरअसल मुसलमान हैं और उनका नाम "अमुक" खान है... जो कि सरासर गलत है.
राजीव धवन के दादा जी का नाम बलिराम धवन है वे रायबहादुर थे. उनके पिता का नाम शांति स्वरुप धवन है जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कानून के व्याख्याता (लेक्चरर) रहे फिर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता, यूनाइटेड किंगडम में उच्चायुक्त, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जैसे पदों पर रहे...
दोस्तों हमने लंबी लड़ाई लड़ी है कई राम भक्तों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिये और अब मंदिर बनने से दो कदम दूर रह गए हैं.. ऐसे में इन बलिदानों को कलंकित करने का काम न करें.
मुस्लिम पक्ष के वकील के प्रति हमें घृणा नहीं बल्कि आदर के भाव से देखना चाहिए.. वे अपना कर्म कर रहे हैं.. ठीक उसी तरह जिस तरह महाभारत की लड़ाई में अनेक योद्धा न चाहते हुए भी कौरवों के लिए लड़ रहे थे.. उन्हें पता था कि इस धर्म युद्ध में धर्म की राह पर कौन है और विजय श्री कौन पायेगा इसके बावजूद वे अपने कर्म के प्रति समर्पित रहे. धवन भी वही कर रहे हैं.. और यह इस लिए आवश्यक है क्योंकि कल को इतिहास यह न कहे कि हमने बहुसंख्यक होने का फायदा उठा लिया .. अब इतिहास कहेगा कि हमने उदारता का एक और बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है.. एक हिंदू वकील ने इस मुकदमे को इमानदारी के साथ लड़ा... हमने मंदिर का निर्माण कानूनी प्रक्रिया से जीत हासिल कर के किया... कल को हारने के बाद मुस्लिम पक्ष भी धवन पर यह आरोप नहीं लगा सकते कि हिंदू होने की वजह से धवन ने जानबुझकर केस हल्का लड़ा.
हम चाहते तो मंदिर का निर्माण सालों पहले कर सकते थे लेकिन हमने जो उदारता दिखाई उसने विश्वभर में हिंदुत्व के विशालता और महानता का परिचय दिया... राजीव धवन को भला बुरा कहकर आप कम से कम गीता के उपदेशों का अपमान न करें... सनातन संस्कृति की असली रक्षा उन पर चल कर ही की जा सकती है... जय श्री राम
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