सही है कई बार इतिहास मे उठाये गये गलत कदम हमारे भविष्य पर ग्रहण लगाने का कार्य करती है। भारत एनएसजी का सदस्य देश नही बन पाया औऱ चीन के अलावे कईं देशों जैसे न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि ने भी भारत का समर्थन नहीं किया।
अब आप सोंच रहे होंगे मैं इतिहास की किस गलती की तरफ इसारा कर रहा हूं। बात दरअसल ‘1961’ की है, भारत के पहले ‘प्रधानमंत्री पं. नेहरु’ के सामने अमेरिका के तात्कालिक राष्ट्रपति ‘जॉन एफ कैनेडी’ ने परमाणु परिक्षण करने की पेशकश की थी और कहा था की वह भारत की मदद करेगा। लेकिन नेहरु जी ने विश्व शांति की दुहाई इस कदर देते हुए अमेरिका के प्रस्ताव को ठुकराया मानो भारत विश्व की सबसे बड़ी ताकत हो।
चीन जिस एनपीटी की बात करता है उसका गठन 1974 में भारत के परमाणु परिक्षण करने का बाद हुआ।जब एनपीटी का गठन हुआ तो तय किया गया कि जिन देशों ने 1967 के पहले परमाणु परिक्षण कर लिया है उन्हें ही परमाणु संपन्य देश माना जायेगा। भारत यदि इसपर हस्ताक्षर करता है तो वह कभी परमाणु परिक्षण नही कर पायेगा, इसलिए भारत ने इसपर हस्ताक्षर नही किया। चीन ने 1964 मे ही परमाणु परिक्षण कर लिया। चीन इसमे शामिल हो गया और आज भारत लाख कोशिशों के बाद भी एनएसजी सदस्य नहीं बन पा रहा है।
यदि 1961 में नेहरु जी ने थोड़ी चतुराई दीखाई होती तो भारत एशिया का पहला परमाणु शक्ति संपन्न देश होता और चीन 1962 मे हमला करने से पहले हजार बार सोंचता, साथ ही आज भारत एनएसजी का सदस्य देश होता।
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