सोमवार, 29 अगस्त 2016

प्रेम की परिस्थिति

सत्य है कि प्रेम न जबरदस्ती दिया जा सकता है न लिया जा सकता है। जहाँ एक बार प्रेम ने वास किया हो वहां उदासीनता और विराग चाहे पैदा हो जाय, हिंसा का भाव पैदा नहीं हो सकता। प्रेम उच्चतर स्तर पर पहुँच कर देवत्व से मिल जाता है।
कई बार देवत्व भाव वाला प्रेम एकतरफा भी देखने को मिलता है। अर्थात दो पहिये वाहन में एक पहिया बड़ा दूसरा छोटा। समझदार इसी से आशय समझ चुके होंगे।
ऐसे में मनुष्य खुद को परिस्थितियों और दूसरों पर निर्भर पाता है। उसके पास खीज़ के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं मिलता। मनुष्य सबसे अधिक रोष भी उसी पर व्यक्त करता है जिसे वो सबसे अधिक प्रेम करता है।
इस स्थिति में प्रियजनों का कर्तव्य है कि हाथ थाम कर आश्रय दें ,स्नेह दें और हरसम्भव प्रेम की शीतलता प्रदान करें न कि परेशानियों की अग्नि में क्रोध और निर्ममता का घी प्रवाहित करें। ध्यान रहे आपका एक निर्णय कई परिवारों को  प्रभावित कर सकता है।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...