खो कर किसी को चाहना
हर किसी से नहीं होता है....
उसी मोड़ पर आ जाता हूं घूम फिर कर
यहाँ से चले जाना नहीं होता है...
ढूंढता फिरता हूँ जिसे रौशनी ले कर
यहाँ नहीं और वो वहां भी नहीं होता है...
ख्वाबे सो चुकी हैं गहरी नींद अब मेरी
लेकिन आँखों का सोना अब नहीं होता है...
धीमे- धीमे अब बढ़ रही है खुराक,
अब तो पीना कम नहीं होता है।।
Note- गीत के हर एक पंक्ति पर राजन कुमार झा का सर्वाधिकार है। इसमें से किसी भी पंक्ति को अनधिकृत रूप से उधृत किये जाने पर कड़ी क़ानूनी कार्र्यवायी होगी।
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