रविवार, 27 मई 2018

मैं तब भी लाचार था मैं अब भी लाचार हूँ

होमवर्क करते हुए अचानक मेरे सिर में दर्द सा महसूस हुआ। लिखते हुए हाथ भी दर्द कर रहे थे। ठीक से लिख नहीं पा रहा था। पास बैठी मां ने भांप लिया बेटे को पीड़ा है। बिना देर किये उन्होंने पूछा क्या हुआ? मैंने संकोच से जवाब दिया कुछ नहीं। उन्होने कलाई पकड़ी और अपनी हाथ में रखी छड़ी छोड़कर अंदर कमरे में चली गईं। तब तक पिताजी आ गये। मां अंदर कमरे से विक्स बाम लेकर आयीं थी। सिर पर मालिस कर रही थीं। पापा बिना कुछ कहे मेरे सिर पर हाथ रखकर मानो शरीर के तापमान का अंदाजा लगा रहे थे। तभी उनके मुंह से निकला अरे इसे तो तेज़ बुखार है। ठहरिये बाम लगाने से नहीं होगा, इसे डाक्टर के पास ले जाते हैं। अच्छा आप आराम करिये सुबह 5 बजे के निकले हुए हैं अभी आय़े हैं साइकिल चला कर थक गए होंगे कूचबिहार 25 किलोमीटर है यहां से। आप आराम कीजिए मैं लेकर जाती हूँ गोपाल डाक्टर के पास। पापा माने नहीं वे खुद ही लेकर गए मुझे डाक्टर के पास अपनी हीरो साइकल पर बैठाकर।  मेरी उम्र उस समय 9 साल की थी और खुद को बहुत लाचार समझ रहा था कि मेरी वजह से मां-पापा कितने परेशान हैं। इस घटना को 16 साल गुजर चुके हैं। और आज भी मैं खुद को लाचार ही समझ रहा हूँ क्योंकि आज पिताजी को बुखार है मां खुद भी बीमार है। मैं उनके पास नहीं हूं हजारों किलोमीटर दूर हूँ। आज न मैं उनके सर पर हाथ फेर सकता हूँ न विक्स लगा पा रहा हूँ।  मेडिकल से एक टैबलेट तक उनके लिए नहीं ला पा रहा हूँ। मैं तब भी लाचार था मैं अब भी लाचार हूँ।

1 टिप्पणी:

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...