मंगलवार, 3 जुलाई 2018

क्या अकेला नहीं कोई सफल होता?

आज नहीं क्या हो सकता जो कल होता,
सच्चा प्रयत्न  नहीं   कभी   विफल होता,
क्या एकता में ही केवल बल होता?
क्या अकेला नहीं कोई सफल होता?

बौने बामन ने अकेले राजा बलि को बांधा था,
तीन पग में नभ, महि और स्वर्ग तक को लांघा था।


एक अकेले विप्र ने क्षत्रिय हीन  जग था किया,
हाथ में परशु को थामे जब विप्र था क्रोधित हुआ।

रावण के महाबली राक्षस लज्जित मुख छिपाये थे,
लंकेश के दरबार में जब अंगद पांव गड़ाये थे।


शक्ति लगी जब लक्ष्मण जी को तुरत मुर्छा खाये थे,
पवन वेग से पवनसुत तब अकेले संजीवन लाये थे।


ज्यों प्रभाकर उदित होते रात्रि को परास्त कर,
त्यों अभिमन्यु था घुसा चक्र व्यूह को ध्वस्त  कर।


एक अकेला सूर्य हर लेता निशा का अंधकार,
संपूर्ण वन में  होता हमेशा  सिंह ही का अधिकार।

होते जीवन में मनुज के संघर्ष अनंत,
संघर्ष ही तो वीरों का होता वसंत।

कभी नहीं वो विकल होते सामर्थ्य जिनमें प्रबल होता,
धैर्य नहीं खोते वो वीर भुजाओं में जिनके बल होता।
क्या अकेला नहीं कोई सफल होता?
क्या एकता मे ही केवल बल होता?



1 टिप्पणी:

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...