पत्ते सा गिर पड़ा, देव से मिला दो
माटी से उठाकर मुझे फूल सा चढ़ा दो।
माटी से उठाकर मुझे फूल सा चढ़ा दो।
रूठी सी रातें रूठी सी नींदे, कहाँ तुम हो?
आओ, झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
आओ, झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
खामोश सी निगाहें खामोश से हैं लब भी
दुनियां वीरानी लगती तुम रूठती हो जब भी।
कहाँ हो मेरी जाना कोई तो सदा दो,
दूर क्यों हो मुझसे मुझे ऐसे न दगा दो,
आओ झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
देखो कि अब ये सांसे थमने मेरी लगी है,
दिल दे कर मुझको तुम ये न कहना दिल्लगी है।
जी कर भी क्या करुंगा तुम मुझको जो भुला दो...
देनी अगर सज़ा है मुझे कोई और सज़ा दो,
आओ झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
देनी अगर सज़ा है मुझे कोई और सज़ा दो,
आओ झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
कैसे भला जिउंगा बिन देखे तेरी सूरत,
कुछ तो जवाब दे दे ऐ पत्थरों की मूरत।
जीना है या कि मरना ये साफ साफ बता दो,
सीने में सुलगते शोले इसे और न हवा दो।
आओ झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
पत्ते सा गिर पड़ा मुझे देव से मिला दो,
माटी से उठाकर मुझे फूल सा चढ़ा दो।
रूठी सी रातें रूठी सी नींदे, कहाँ तुम हो?
आओ, झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
जीना है या कि मरना ये साफ साफ बता दो,
सीने में सुलगते शोले इसे और न हवा दो।
आओ झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
पत्ते सा गिर पड़ा मुझे देव से मिला दो,
माटी से उठाकर मुझे फूल सा चढ़ा दो।
रूठी सी रातें रूठी सी नींदे, कहाँ तुम हो?
आओ, झकझोर कर मुझे फिर भोर सा जगा दो।
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