अविश्वास प्रस्ताव गिरना था यह इसे लाने वालों को भी पता था। प्रस्ताव लाने का जो मक़सद था उसे सत्ता पक्ष ने अवसर समझा और प्रस्ताव स्वीकार किया गया चर्चा शुरु हुई। जयदेव भल्ला ने सधी हुई शुरुआत की। सधी हुई इसलिए क्योंकि एनडीए से अलग होने के लिए चंद्रबाबु ने जो वजहें देश के सामने रखी थी इसमें उससे अधिक कुछ नहीं था। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष और उनसे सहयोगियों ने इस अवसर का लाभ उठा कर देश के सामने अपना प्रचार कर लिया। देश की मीडिया चर्चा को लगातार कवर कर रही थी अर्थात जो बातें लोगों ने रैलियों में नहीं सुनी होंगी वो सब कुछ उनके सामने पड़ोसा जा रहा था। प्रस्ताव उल्टा पड़ गया। इस बीच राहुल गांधी के भाषण को दो भागों में बांट कर देखें तो पहला हिस्सा थोड़ा आक्रमक था लेकिन उनके तरकस से जो तीर छूट रहे थे वो पुराने वाले ही थे उन्होंने किसी नये दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं किया। दूसरे हिस्से में भाषण खत्म कर मोदी जी के पास जाकर उनसे गले मिलना और अपनी सीट पर आकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को आंख मारना उनके भाषण की रही सही गंभीरता पर पानी फेर गया। राहुल ने अपने भाषण के दौरान इसके अलावे एक चूक औ कर दी उन्होंने रफेल डील पर सवाल उठाये और फ्रांस के राष्ट्रपति का जिक्र किया। इस पर फ्रांस की सरकार के तरफ से राहुल के बयान की पोल खोल दी गई और उनकी जमकर फजीहत हुई। मोदी जी ने अपने भाषण की सीमा बढ़ा ली। वे 1.30 घंटो तक बोलते रहे शायद राहुल गांधी के 15 मिनट न टिकने वाली बात को उन्होने ज्यादा गंभीरता से ले लिया। उन्होंने भल्ला साहब से लेकर राहुल गांधी तक के सभी आरोपों का बारी बारी से खंडन किया और जवाब दिया। रोजगार सृजन के मामले पर कुछ नोट्स मोदी जी जल्दी जल्दी पढ़ गए। अर्थात आशा के मुताबिक इस क्षेत्र में काम नहीं हुआ है यह बात आसानी से समझी जा सकती है। लोकसभा में विपक्ष शक्ति परिक्षण में धरासायी हो गया उन्हें सिर्फ 126 एमपी का समर्थन हासिल हुआ वही बीजेडी और शिवसेना के वोटिंग से अलग होने के बावजूद सत्ता पक्ष को 325 वोट मिले। कांग्रेस समेत विपक्ष के करारी हार की गुंज 2019 तक सुनाई देगी। टीडीपी एक क्षेत्रिय पार्टी है इससे टीडीपी को उतना नुकसान नहीं होगा जितना कि कांग्रेस को।
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